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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-18 (विषय: पर्दे के पीछे)

आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 17 आयोजनों की अपार सफ़लता के बाद "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 18  में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-18
विषय : "पर्दे के पीछे"
अवधि : 29-09-2016 से 30-09-2016 
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 29 सितम्बर 2016 लगते ही खोल दिया जायेगा)
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जनाब तस्दीक अहमद साहब प्रदत्त विषय को बेहद उम्दा तरीके से परिभाषित किया है आपकी रचना ने। दिळी मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं जनाब।

मोहतरम जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता    साहिब ,  लघु कथा में गहराई से शिरकत करने और  पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ---

बढ़िया कथा हुई है जनाब तस्दीक साहब | हार्दिक बधाई |

मोहतरमा  कल्पना     साहिबा  ,  लघु कथा में गहराई से शिरकत करने और  पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ---

लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ जी।

मोहतरम जनाब महेंद्र कुमार     साहिब ,  लघु कथा में गहराई से शिरकत करने और  पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ---

‘तमाचा’

 

सड़क की तरफ खुलने वाली खिड़की कम्मो आजकल  कम ही खोलती थी  क्योंकि  उस तरफ दीवार पर चिपके कल्याण के पोस्टर पर  खिड़की खुलते ही नज़र पड़ जाती थी और कम्मो का मन गुस्से से भर जाता था I बाहर को फट पड़ रहीं बड़ी बड़ी आँखों से घूरता ,मूँछ उमेठता कल्याण , पोस्टर के नीचे लिखा था ‘पीड़ित और कुचले लोगों  की एक ही आस ‘I

कम्मो की मुट्ठियाँ भिंच जाती थीं  ये सोचकर कि कैसे कल  का गुंडा, आज  उनकी जाति वालों का  नेता बन गया था I वो दिन भी उसे याद था जब सूरज के बापू ने कल्याण को जोरदार  तमाचा जड़ा था , मोहल्ले की लडकी पर गलत नज़र डालने पर I  उस तमाचे की गूँज अब भी बहुत दिलों में बाकी थीI

आज कल्याण खुद को बहन बेटियों का रक्षक बताता  था I एक बलात्कार पीडिता को न्याय दिलाने के लिए चल रहा उसका आन्दोलन  सुर्ख़ियों में था I अलग अलग रंग के नेता मिलने आते रहते थे उससे I

“ अम्मा आज भर्ती है पुलिस में ,मै जा रहा हूँ I   तीन चार दोस्त  और हैं  साथ में “I  सूरज ने धीरे से कम्मों के कंधे पर हाथ रख दिया I

“  कल्याण के गुंडे होने देंगे भर्ती ? वो तो नाराज़ हैं पुलिस से I  पता नहीं कब तक चलेगा ये सब “I

“ जब दाम मिल जाएगा तब रुक जाएगा  अम्मा i   शुरू करने और रोकने ,दोनों के दाम लेता है ये पीछे से I  हमारे लिए कुछ नहीं कर रहा है I तू तो जानती ही है ना इसका नाटक  “ I सूरज ने माँ का हाथ अपने हाथ में ले लिया I

“ देखो i  बेटा  कितना बड़ा और समझदार हो गया “ दीवार पर लगी पति की तस्वीर की तरफ देख कम्मो बुदबुदाई I

“ क्या ..क्या बोल रही है ?”

“कुछ नहीं “  बेटे से छिपा  कर आँखें पोंछ लीं  उसने  “  खडा क्या है ,अब जा जल्दी “I

  बंद खिड़की  पूरी  खोल दी कम्मो ने  I सूरज दोस्तों के साथ  मोटर साइकिल का धुँआ  उड़ाता पोस्टर के आगे से निकल रहा था I  खिड़की के पास खड़े होकर  कल्याण की आँखों में अब वो सीधे झाँक रही  थी I अचानक  उसे लगा कि मूँछ उमेठता कल्याण का हाथ अब मूँछ छोड़कर अपना गाल सहला रहा है  धीरे धीरे I  

 

 मौलिक व् अप्रकाशित      

करनी व कथनी का भेद बखूबी खोल दिया है आप ने,. आदरनीय प्रतिभा पाण्डेय जी .

हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी 

विषय पर आधारित सुंदर कहानी। नक़ाब के पीछे छिपा असल चेहरा। समाज का सच।

हार्दिक आभार आदरणीय आशीष कुमार जी 

बहुत खूबसूरत कथा ...सादर _/\_

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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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