For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 70 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-71

विषय - "कर्म"

आयोजन की अवधि- 9 सितम्बर 2016, दिन शुक्रवार से 10 सितम्बर 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र दो ही प्रविष्टियाँ दे सकेंगे. 
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 9 सितम्बर 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 11877

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सादर प्रणाम आदरणीय योगराज भाई जी. अनुमोदन मिलाबस हम तृप्त हुए. सादर धन्यवाद

पेट या परिवार के हित कर्म तो करते सभी ।
सत्य है, उपकार हित शुभ-कार्य से तरते सभी ॥
क्या करें क्या ना करें, निर्णय कठिन होता सदा ।
किन्तु सुखकर जो सभी को, मान्य है वह सर्वदा ॥
********************


कर्म को परिभाषित करती एक अनुपम प्रस्तुति। आदरणीय सौरभ सर इससे सुंदर कर्म की व्याख्या क्या हो सकती है जो जीवन के हर पहलू को जीवंत करे। इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

आदरणीय सुशील सरना जी, आपके शब्दों से मीठी और मुलायम फुहार झरती हुई भिगो डालती है. तर-बतर कर देती है.. 

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 

// जो करे हर काम को बस स्वार्थ-पोषित भाव से ।
क्षुद्र है वह नर घृणित, सद्भाव भरता घाव से ॥
कर्मजीवी की सदा आदर करें, जो सभ्य हैं । 
सभ्यता की हो कसौटी, कर्म-रत क्या लभ्य हैं !// सत्य है आदरणीय सौरभ पांडेय जी , महत्त्व निःस्वार्थ कर्म का ही है।  यही नहीं, वास्तव में कर्म तो मात्र वही है जिसमें देने का ही भाव हो , जहाँ बदले में कुछ पाने की चाह उत्पन्न हुई कि व्यापार की परिभाषा में आ जाते हैं। सुन्दर रचना के लिए बधाई निवेदित। आपसे गीतिका छंद की जानकारी मिली इसके लिए विशेष धन्यवाद। 

पल नहीं कोई हुआ, बिन कर्म के बीता कभी ।
इस जगत में हर फलाफल का यही कारण तभी ॥

आदरणीय सौरभ सर, वाकई इस जगत में फलाफल का कारण कर्म ही है. अद्भुत ढंग से एक एक पल के कर्ममय होने की पुष्टि करती शानदार पंक्तियों से प्रस्तुति का आरम्भ हुआ है. जैसे आयोजन का विषय इन्हीं पंक्तियों की आशा में दिया गया था. 


ज्ञानियों के ज्ञान का जो मर्म है वह जान लें ।
साथ ही, क्या कर्म है, इस अर्थ का संज्ञान लें ॥.................. वाकई कही गई बातों का मर्म जानना अधिक अनिवार्य है. ज्ञानियों के ज्ञान के मर्म में वास्तव में कर्म ही छुपा होता है. 

कर्म का कारण सदा हो धर्म के शुभ से ढला ।
राष्ट्र का, परिवार का, हर गाँव-घर का हो भला ॥................ स्पष्ट और सम्प्रेषणीय पंक्तियाँ जो सबके शुभ का आह्वान करती है.

 

लोक-संग्रह, लोक-हित हो, मान्य लौकिक कर्म हो ।
मूल्य तार्किक, स्वेद-सम्मत, भाव-पोषित धर्म हो ॥.................. वाह वाह वाह....."स्वेद-सम्मत" का जवाब नहीं. वेद सम्मत तो बहुत पढ़ा भी और प्रयोग भी किया लेकिन इस "स्वेद सम्मत" शब्द से प्रदत्त विषय को जैसी सार्थकता मिली है, वह निर्वचनीय है. इस शब्द की महत्ता और कवि के शब्द चातुर्य को यहाँ साझा करता चलूँ तो अच्छा रहेगा- साहित्य में, रोष, लज्जा, हर्ष, श्रम आदि से शरीर का पसीने से भर जाना, एक सात्विक अनुभाव माना गया है। यहाँ श्रम से शरीर का पसीने से भर जाने का सात्विक भाव जिस गहराई से शाब्दिक हुआ है वह अद्भुत है.

कर्म से नाते परस्पर, कर्म से भाते सभी ।
कर्म ही से इस जगत में नाम-धन पाते सभी ॥......................... सही कहा आपने.


स्वार्थ की उपलब्धियाँ उत्पाट दें हम चाह से ।.................... वाह वाह वाह. बहुत बढ़िया शब्दों में एक सार्थक सन्देश. यहाँ चाह के दोनों अर्थ "इच्छा और प्रेम" अद्भुत व्यंजना पैदा कर रहे है. स्वार्थ की उपलब्धियों का उन्मूलन इच्छाशक्ति से करें या प्रेम से करें. स्वार्थ के मूल उच्छेदन के पश्चात यह तो होगा ही कि-//ओज औ’ ऊर्जा भरे हम रत रहें उत्साह से ॥//


जो करे हर काम को बस स्वार्थ-पोषित भाव से ।
क्षुद्र है वह नर घृणित, सद्भाव भरता घाव से ॥
कर्मजीवी की सदा आदर करें, जो सभ्य हैं । ........... इस पंक्ति में कर्मजीवी का/की सदा पर सशंकित हूँ. मार्गदर्शन निवेदित है.
सभ्यता की हो कसौटी, कर्म-रत क्या लभ्य हैं !.......................... बहुत बढ़िया

पेट या परिवार के हित कर्म तो करते सभी ।
सत्य है, उपकार हित शुभ-कार्य से तरते सभी ॥
क्या करें क्या ना करें, निर्णय कठिन होता सदा ।
किन्तु सुखकर जो सभी को, मान्य है वह सर्वदा ॥................. सार्थक सन्देश देती पंक्तियाँ. "परहित सरिस धर्म नहिं भाई" के मूलाभाव को आज के संदर्भ में शाब्दिक करती इन पंक्तियों ने अपना सन्देश पाठक मन तक बखूबी पहुँचाया है. 

इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर नमन.

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश भाई । 

अभी एक कार्यक्रम में होने के कारण ओबीओ के पटल से दूर हूँ। मेरी विवशता को आयोजन के सहभागियों से साझा कर दीजियेगा। 

शुभ-शुभ 

कर्म का कारण सदा हो धर्म के शुभ से ढला ।
राष्ट्र का, परिवार का, हर गाँव-घर का हो भला ॥
लोक-संग्रह, लोक-हित हो, मान्य लौकिक कर्म हो ।
मूल्य तार्किक, स्वेद-सम्मत, भाव-पोषित धर्म हो ॥ ....... वाह .... वाह ....वाह .... जीवन दर्शन पर अप्रतिम सृजन . नमन आदरणीय सौरभ जी .

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतीशजी 

दोहे

इधर उधर की सोच मत, करता जा तू कर्म
ये ही तेरा काम है ,और यही है धर्म

आते हैं तुमको नज़र ,ख़ाली मेरे हाथ
तुम देखोगे हश्र में ,कर्म रहेगा साथ

कर्म बिना कुछ भी नहीं ,सुन ले मेरी बात
उस दिन तू पछतायेगा,जिस दिन होगी मात

अमरीका ,जापान हो,भारत हो या चीन
ताक़त मिलती कर्म से,इतना मुझे यक़ीन

इक शय है बेकार सी,कहीं न आये काम
कर्म नहीं तो आदमी,बिकता है बेदाम

मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय समर कबीर जी आपकी सहभागिता और छन्द प्रयास आश्वस्तिकारक है. इस दोहा-प्र्स्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद.

इधर उधर की सोच मत, करता जा तू कर्म
ये ही तेरा काम है ,और यही है धर्म
कर्म और काम के बीच के फ़र्क़ को बताता हुआ दोहा हुआ है, आदरणीय़.

आते हैं तुमको नज़र ,ख़ाली मेरे हाथ
तुम देखोगे हश्र में ,कर्म रहेगा साथ
तेरा तुझको अर्पण को साझा क्तरा हुआ दोहा हुआ है. सही है, सारे काम दायित्वबोध के साथ किये जायँ तो कर्म के फल से मानव नहीं बँधता.

कर्म बिना कुछ भी नहीं ,सुन ले मेरी बात
उस दिन तू पछतायेगा,जिस दिन होगी मात
कर्म की महत्ता बताता हुआ एक और दोहा के लिए धन्यवाद आदरणीय

अमरीका ,जापान हो,भारत हो या चीन
ताक़त मिलती कर्म से,इतना मुझे यक़ीन
सही है, हर् सभ्यता और संस्कृति में कर्म की महत्ता गायी है. सार्थक इंगित केलिए हार्दिक बधाई.

इक शय है बेकार सी,कहीं न आये काम
कर्म नहीं तो आदमी,बिकता है बेदाम
बहुत खूब आदरणीय. निठल्ले को खूब परिभाषित किया है आपने.

 

इस प्रस्तुति के लिएहार्दिक धन्यवाद और अशेष शुभकाअनाएँ..
शुभेच्छाएँ

एक से बढ़कर एक दोहे विषय को सार्थक करते हुए, हार्दिक बधाई आ. समर साहब

मोहतरमा नीरज शर्मा साहिबा आदाब,सराहना के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
1 minute ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
3 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
6 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service