आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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माता-पिता, जो हमें उस क्षण से प्रेम करते हैं, जब हम पैदा हुए थे, के विरुद्ध जाने पर कभी न कभी पछतावा होता ही है| और फिर एक प्रायश्चित यह भी किया जा सकता है कि जिन परिस्थितयों में हैं, उन्हीं के साथ समझौता करते हुए जीवन जीते रहें| बहुत ही बढ़िया सन्देश देती इस रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया शशि जी|
एक सशक्त रचना, प्रदत्त विषय को पूर्णतया संतुष्ट करती हुई ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया शशि जी
बेहद सुन्दर लघुकथा कही है आ० शशि बंसल जीI प्रदत्त विषय बहुत कुशलता से परिभाषित हुआ है, हार्दिक बधाई स्वीकारेंI
बहुत बढ़िया लघु कथा लिखी है प्रिय शशी बंसल जी पंच लाईन प्रदत्त विषय को पूर्णतः सार्थक कर रही है बहुत बहुत बधाई
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