आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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मोहतरम जनाब टी आर शुक्ल साहिब ,राजनीति का रंग दर्शाती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan जी ! कथा पर अपनी उपस्थिति देकर अपने मनोभावों को प्रकट करने के ल...
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ टी आर सुकुल जी!आज के माहौल का अच्छा खाका खींचा है!बेहतरीन प्रस्तुति !
आदरणीया Nita Kasar ji कथा पर अपना अनुमोदन देने के लिए विनम्र आभार।
हा हा हा हा हा, बहुत खूब, बढ़िया कटाक्ष, अच्छी प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ टी आर शुकुल जी.
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi"ji कथा पर उपस्थित होने और उसे अपने मनोभावों से सुसज्जित करने के लिए विनम्र आभार।
वाह! गजब के विषय का चयन किया है आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी सर| भौतिक विज्ञान के सिद्धांत द्वारा आज का महत्वपूर्ण सच बताना बहुत ही गूढ़ सोच का परिणाम है| सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय|
आदरणीयChandresh Kumar Chhatlani"ji कथा पर उपस्थित होने और उसे अपने मनोभावों से सुसज्जित करने के लिए विनम्र आभार।
वाह वाह वाह ... जबरदस्त कटाक्ष.
आपने तो आज की सारी उथल पुथल को भौतिकीय नियम के बिम्ब पर अद्भुत ढंग से रच दिया. इस शनदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर ji कथा पर उपस्थित होने और उसे अपने मनोभावों से सुसज्जित करने के लिए विनम्र आभार।
तस्वीर
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हामिद जब स्कूल से आया तो उसके चेहरे पर वैसी ही ताजगी थी जैसी मेले से दादी हामिदा के लिए चिमटा लाने पर नुमायां हुई थी . हामिदा ने पूछा – ‘क्या हुआ हामिद ? आज तू बड़ा खुश है’ .
खुश होने की बात है न दादी, आज मैं स्कूल में फर्स्ट आया . तस्वीर बनाने की प्रतियोगिता में मैं अव्वल माना गया’.
‘अच्छा क्या चित्र बनाना था ?’
‘दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज की तस्वीर बनानी थी दादी’.
‘और तूने अपनी माँ की तस्वीर बनायी होगी ? माँ से खूबसूरत दुनिया में और कोई नहीं .’
‘मेरी छोड़ दादी, स्कूल में किसी ने हीरोइन की ,किसी ने गुलाब और कमल की, किसी ने पर्वत और झरने की तस्वीर बनायी. जिसने माता-पिता की तस्वीर बनाई, उसे तीसरा पुरस्कार मिला, जिसने केवल माँ की बनाई उसे दूसरा पुरस्कार मिला –‘ऐ’-------- फिर तूने कौन सी तस्वीर बनायी ?’
‘लो खुद ही देख लो--------‘ – चूल्हा फूंकती कमजोर सी औरत थी . तस्वीर के नीचे लिखा था –‘माँ को तो मैंने कभी जाना नहीं, यह तस्वीर मेरी दादी की है’. बूढ़ी आँखों ने अब अपनी प्रतिकृति को पहचाना . बच्चे हामिद ने एक बार फिर बूढ़े हामिद का पार्ट खेल दिया था, बुढ़िया अमीना फिर से बालिका अमीना बन रोने लगी . दामन फैलाकर हामिद को दुआएं देती जाती थी और आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदे गिराती जाती थी . इस बार भी हामिद इसका रहस्य नहीं समझ सका .
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(मौलिक व अप्रकाशित )
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