आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 49 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ – 15 मई 2015 दिन शुक्रवार से 16 मई 2015 दिन शनिवार तक
इस बार के आयोजन के लिए पुनः शक्ति छन्द का ही चयन किया गया है.
शक्ति छ्न्द के आधारभूत नियमों को जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
एक बार में अधिक-से-अधिक चार (4) शक्ति छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है.
ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 मई 2015 से 16 मई 2015 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
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[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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हार्दिक आभार श्री laxman dhami जी
सुन्दर प्रयास आदरणीय लडिवाला जी, बहुत बहुत बधाई.
हार्दिक आभार आदरणीय श्री गणेशजी “बागी” जी
आदरणीय लडिवाला जी, शक्ति छन्द में प्रदत्त चित्र से न्याय करता सुंदर छन्द, बधाइयाँ.........
बहन आज रो मत संभालूं तुझे
बहन आज रो मत संभालूं तुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे
जीवन की है मंद मुस्कान तू
मुकद्दर तुही और ईमान तू
धरा में स्वसा की बड़ी आन है
धवल ईश का एक वरदान है
बड़े भाग्य से तू मिली है मुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे
पिता तो नहीं किन्तु भाई सही
सहज डोर तू मैं कलाई सही
अभी तो निभाना सभी धर्म है
कसैला जगत है कठिन कर्म है
रहे दीप जलता न मग में बुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे
बहन तू न घबरा अभी जान है
अँधेरा ज़रा देर मेहमान है
रहूँगा निशा भर यहाँ जागता
विधाता अभी हव्य क्या मांगता ?
बहुत प्रश्न अब भी यहाँ अनबुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे
==========
आ० सीमा जी
मै स्वतः लज्जित हूँ की यह असावधानी मुझसे क्यों हुयी ---- पर इंगित करने हेतु आपका आभार --इसका तत्काल संशोधन करता हूँ
उजाला मधुर मंद मुस्कान तू i निभाने भी उचित है i सादर .
आदरणीय गोपाल भाई
विषम परिस्थिति में एक भाई ने बहन का हौसला बड़े ही आत्म विश्वास के साथ बढ़ाया।
सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई
आ० अखिलेश जी
सादर आभार.
आदरणीय गोपाल नारायनजी, छन्दोत्सव में आपकी उपस्थिति आश्वस्त करती है कि अभी छन्द-प्रेमी हताश नहीं हुए हैं. छन्द पर प्रयासरत रचनाकर्मियों में उत्साह है. लेकिन फिर वही, देखिये न, नियमों को न पढ़ा जाना कितना आड़े आ रहा है.
चार छन्दों की जगह पाँच छन्द प्रस्तुत हो गये.
यह अलग बात है कि आप छन्दों को छन्द की तरह प्रस्तुत न कर गीत की तरह प्रस्तुत करना चाह रहे थे.
आदरणीय, किन्तु, ऐसे प्रयोगों के लिए मंच पर पहले से ही काव्य-महोत्सव का आयोजन हो रहा है. छन्दोत्सव की अपनी विशिष्टता है.
फिर, कहते हैं न, छाप तिलक सब छीनी रे तोसे नैना लड़ाइके.. आप ग़ज़ल सीखने की राह पर क्या बढ़े आपको वर्णों की मात्रा गिराने की आदत हो गयी.
आप ’तू’ शब्द को कभी सही लिखते हैं तो कभी ’तु’ कर लेते हैं. ऐसा ही एक शब्द मेहमान भी प्रयुक्त हुआ है. यहाँ इस शब्द को महमान करना उचित नहीं होगा. हिन्दी भाषा में यह मेहमान ही है न कि मेह्मान.
आगे देखिये -
जीवन की है मंद मुस्कान तू .. क्या दीर्घ या गुरु वर्ण से इस छन्द की पंक्ति प्रारम्भ हो सकती है ?
विश्वास है, आप मेरे कहे से संतुष्ट हो पाये होंगे.
सादर
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