For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा इस दौर के मशहूर शायर तहज़ीब हाफ़ी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।
तरही मिसरा है:
“तुम्हें कुछ बारिशों से याद आया”
बह्र 1222 1222 122
मफ़ाईलुन्, मफ़ाईलुन्, फ़ऊलुन् है।


रदीफ़ है “से याद आया”और क़ाफ़िया है ‘ओं का स्वर’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं, लरजिशों, महफ़िलों, ताकतों, शायरों, मंज़िलों, ख़्वाहिशों आदि
उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।
मूल ग़ज़ल यह है:


मुझे इन छतरियों से याद आया
तुम्हें कुछ बारिशों से याद आया।


बहम आई हवा और रौशनी भी
क़फ़स भी खिड़कियों से याद आया।


मिरी कश्ती में उस ने जान दी थी
मुझे इन साहिलों से याद आया।


मैं तेरे साथ चलना चाहता था
तिरी बैसाखियों से याद आया।


हज़ारों चाहने वाले थे इस के
वो जंगल पंछियों से याद आया।


बदन पर फूल मुरझाने लगे हैं
तुम्हारे नाखुनों से याद आया।


मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 नवंबर दिन गुरुवार से प्रारंभ हो जाएगी और दिनांक 28 नवंबर दिन शुक्रवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 नवंबर दिन गुरुवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 821

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सादर अभिवादन

तुम्हारी ख़्वाहिशों से याद आया

हमें कुछ तितलियों से याद आया

मैं वो सब भूल जाना चाहता था

जो कुछ था बारिशों से याद आया

ज़रूरी बाढ़ भी है मुल्क में क्यूँ

ये सूखा राहतों से याद आया

बदलना ज़िन्दगी की है ज़रूरत

पुराने साथियों से याद आया

यहाँ क्यूँ इतना सन्नाटा है मुझ को

अदृश्य ताक़तों से याद आया

बताता रहनुमा था छतरी को छत

"तुम्हें कुछ बारिशों से याद आया"

मौलिक एवं अप्रकाशित 

आ. जयहिन्द रायपुरी जी,

पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ.
तहज़ीब हाफ़ी की इस ग़ज़ल को बाँधने में दो मुख्य मुश्किलें हैं.
1) मतला और सार्थक मतला कहना मुश्किल है 
2) बह्र छोटी है और रदीफ़ लम्बी जिससे सानी मिसरा ठीक होने में अडचन पेश आती है.

आपने जो प्रयास किया है वह ध्यानाकर्षक है जिसके लिए आप बधाई के हक़दार हैं.
लेकिन मतला 
.

तुम्हारी ख़्वाहिशों से याद आया

हमें कुछ तितलियों से याद आया ... अभी कुछ काम चाहता है .. क्यूँ कि तितलियों और ख़ाहिशों का सीधा सम्बन्ध नहीं है ..कुछ मिसिंग है जो डिफाइन नहीं कर पा रहा हूँ.
.

.

मैं वो सब भूल जाना चाहता हूँ 

मुझे जो  बारिशों से याद आया...

इसमें प्रवाह भी है, काल भी ठीक हो गया और तक़ाबुल ए रदीफ़ से मुक्ति भी मिल गयी ..

.

बदलना ज़िन्दगी की है ज़रूरत

पुराने साथियों से याद आया... ये अच्छा शेर हुआ है .. विशेष बधाई. 

अदृश्य ताक़तों से याद आया... मिसरे में कुछ अटकाव है .. बह्र अदृश्य में अटक रही है.
.
ग़ज़ल के प्रयास के लिए और आयोजन के उद्घाटन करने हेतु बधाई.

सादर  

आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला

मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों से तितलियों को जोड़ने की कोशिश थी शायद नाकामयाब रहा

मैं वो सब भूल जाना चाहता हूँ

मुझे जो बारिशों से याद आया

आपके उपयुक्त इस्लाह से संवर गयी है

अदृश्य ताक़तो से याद आया  मुझे भी अदृश्य कुछ खटक रहा था

"छुपी कुछ ताक़तों से याद आया  "किया जा सकता है क्या

बाकि आपको मेरा एक शैर भी पसंद आया तो मेरा अहोभाग्य

आशा है आपसे मार्गदर्शन मिलता रहेगा  बहुत- बहुत धन्यवाद आपका 

उदाहरण ग़ज़ल के मतले को देखें

मुझे इन छतरियों से याद आया
तुम्हें कुछ बारिशों से याद आया।

स्पष्ट दिख रहा है कि यह एक ही दृश्य पर प्रत्यक्ष में हुआ संवाद है। यह देखते हुए मतले में किसी ऐसे ही दृश्य की कल्पना करना होगी। 

अदृश्य 221 के वज़्न में है और इसमें गिराकर पढ़ने की गुँजाईश नहीं है। अटकाव होना ही है। ऐसा अक्सर होता है शब्द मोह के कारण। किसी शब्द विशेष काे स्थान विशेष पर प्रयोग करने से बचेंगे तो ऐसा नहीं होगा। 

आदरणीय कपूर साहब नमस्कार बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका आपने वक़्त दिया

मतला  

"तुम्हारी ख़्वाहिशों से याद आया

गिला क्यूँ तितलियों से याद आया"  

नीलेश जी के कहे से सहमत हूँ। उसपर भी ध्यान दें। 

जी 

 ,आ, जय हिन्द जी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!

जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी 

आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर' जी ने कह ही दिया है। निरंतर मेहनत से ग़ज़ल में ज़रूर निखार आएगा। शुभकामनाएँ

आदरणीय शिज्जु शकूर जी बहुत शुक्रिया आपका 

मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी।

बदलना ज़िन्दगी की है ज़रूरत

पुराने साथियों से याद आया

   अच्छा शेर हुआ है। 

आखिरी शेर में छतरी की मात्रा गिरना असहज लग रहा है। बाकी निलेश सर ने बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service