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पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे

रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल।
उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।
*
जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।
रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।
*
छीन किसी के लाल को, जो सौंपे नित पीर।
कहाँ धर्म के मर्म को, जग में हुआ अधीर।।
*
बनकर बस हैवान जो, मिटा रहे सिन्दूर।
वही नीच पर चाहते, जन्नत में सौ हूर।।
*
मंसूबे उनके जगत, अगर गया है ताड़।
देते है फिर क्यों उन्हें, कहो धर्म की आड़।।
*
पहलगाम ही क्यों कहें, पग-पग मचा फसाद।
किससे पाना चाहते, समझो तो ये दाद।।
*
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by Ashok Kumar Raktale yesterday

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत सुन्दर सुझाव आदरणीय सौरभ जी दे चुके हैं. सच है दोहे को प्रभावकारी बनाने के लिए एक बार पढ़कर कुछ परिमार्जन किया ही जा सकता है. सामयिक घटना पर दोहे रचने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Tuesday

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, 

जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह लोमहर्षक था. 


आपकी दोहावली के लिए हार्दिक साधुवाद. 

इसके पूर्व अपनी जो समझ बनी है वह अवश्य ही आपके माध्यम से पटल पर साझा करना चाहूँगा. 

१. छंदों के पदों (पंक्तियों) के चरणों की बुनावट अर्थवान हो तो उसकी संप्रेषणीयता बढ़ जाती है.

२. पदों (पंक्तियों) या उनके चरणों के लिए गद्यात्मक वाक्य आम तौर पर तो संभव नहीं हो पाते, फिर भी वाक्य-विन्यास के लिए शब्दों के स्थान उचित हों, ताकि ऐसी पंक्तियाँ यथोचित रूप से संप्रेषणीय हों

३. पंक्तियों में इस तरह की तार्किक बुनावट के बावजूद छंद विधान को लेकर कोई समझौता स्वीकार्य नहीं होती. 

अब उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में आपके छंदों को देखा जाय - 

रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल। ...  बहा रहे जो रक्त नित ... प्रथम चरण को यदि ऐसे कहें तो बात अधिक सहजता से आएगी
उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।    ..    उनका तो उद्देश्य यह
*
जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।      ...  जीवन-रक्षा का कभी, नहीं किया जब कर्म 
रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।   ....    रक्त-पिपासु रहे सदा, क्या समझेंगे धर्म ?   पिपाशू नहीं इसकी शुद्ध अक्षरी पिपासु है. 

इसी तरह अन्य छंदों पर काम किया जा सकता है, आदरणीय. 

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2025 at 12:06pm

​अच्छे दोहे लगे आदरणीय धामी जी। 

कृपया ध्यान दे...

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