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ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो

,

उस के नाम पे धोके खाते रहते हो
फिर भी उस के ही गुण गाते रहते हो.
.
उस के आगे बोल नहीं पाते हो तुम
मैं बोलूँ तो हाथ दबाते रहते हो.
.
कोई नया इस दुनिआ में कब आता है
तुम ही जा कर वापस आते रहते हो.
.
तुम को वापस अपने घर भी जाना है
क्यूँ दुनिआ से लाग  लगाते रहते हो.
.
अक्सर मिलता है वो इन्साँ पूजता है 
वो जिस को तुम ख़ुदा बताते रहते हो.
.
वाइज़ जी क्या तुम ने वो सब सीख लिया 
हम को जो कुछ तुम समझाते रहते हो.
.
वो ख़ालिक जाड़े में ठिठुरता रहता है 
चादर दरगाहों पे चढाते रहते हो.
.
वो सीढ़ी पर भूखा मरता रहता है
तुम पत्थर को भोग लगाते रहते हो.
.
जंग में है वो आओ “नूर” का रथ हाँको
क्या मुरली की तान सुनाते रहते हो.

.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 550

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 12, 2022 at 8:03am

धन्यवाद आ. मनोज अहसास जी,

शे'र का भाव वही है जो शब्दों में है.. कुछ हिडेन नहीं है ..
ईश्वर स्वयं मनुष्य का पुजारी है क्यूँ कि ईश्वर को मनुष्य ने बनाया है 
सादर  

Comment by मनोज अहसास on January 12, 2022 at 12:18am

आदरणीय नूर साहब सादर नमस्कार 

बहुत सुंदर ग़ज़ल की हार्दिक बधाई

अक्सर मिलता है वो .........

इस शेर का भाव मुझे स्पष्ठ नहीं हुआ कृपया थोड़ी व्याख्या से समझाने की कृपा करें

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 31, 2021 at 11:07am

आभार आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 31, 2021 at 11:06am

आभार आ. गुरप्रीत जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 31, 2021 at 11:06am

आभार आ. समर सर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2021 at 7:50am

आ. भाई नीलेश जी, बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Gurpreet Singh jammu on December 31, 2021 at 7:49am

वाह आदरणीय नीलेश सर, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने।

Comment by Samar kabeer on December 30, 2021 at 3:48pm

जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब , अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें I 

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