Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक आभार आदरणीय भाई योगराज प्रभाकर जी।
आदरणीय TEJ VEER SINGH साहिब, आपको इस बेहतरीन लघुकथा पर हार्दिक बधाई। कहानी का अंत बेहद प्रभावशाली लगा: "हमें माँ की बलि देकर भाई नहीं चाहिये।"
हार्दिक आभार आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी।
रोग
.
" कैसे हो भाई ?" मुहँ पर कसे कपड़े को ढीला करते हुए उन्होंने थकी आवाज़ में पूछा.
लॉकडाउन के बाद आज ऑफिस खुलने का पहला ही दिन है I वो सुबह से ही आ गए थे Iउन्हें मैं पिछले सात महीनों से इस ऑफिस के चक्कर काटते देख रहा हूँ I एक बार पूछने पर उन्होंने बताया था कि अपने मृतक बेटे से सम्बंधित कुछ कागजातों के सिलसिले में आते हैं I ऑफिस परिसर में बने मेरे चाय स्टॉल में अक्सर आकर बैठते रहे हैं वो I पेशे से रिटायर्ड शिक्षक हैं I शुरू में एक दो बार काफी उत्साहित भी दिखे थे वो कि जैसे बस काम हो गया समझो I मेरे पूछने पर बताया कि उनके किसी विद्यार्थी के रिश्तेदार मिल गए हैं जो इस ऑफिस में कार्यरत हैं I
" जी ठीक हूँ I आज तो भीड़ कम है I कुछ काम हुआ ?" आवाज़ में भरपूर उत्साह भरते हुए मैंने पूछा I
" कैसे होगा काम !" चेहरे से कपड़ा हटा लिया उन्होंने |चेहरा तमतमाया हुआ था उनका | " आज ही तो खुला है ऑफिस | सैटल होने में समय लगेगा ना ! हम जैसे निट्ठले रिटायर्ड थोड़ी हैं ये |"
" हद है | वैसे कहते क्या हैं ? क्यों नहीं निकाल पा रहे हैं एक छोटा सा कागज़ इतने महीनों में ?" मैंने उनकी तरफ चाय बढ़ाते पूछा |
" कहेंगे क्या | प्रयास जारी है | अपनी तरफ से तो कोशिश कर ही रहे हैं ना बेचारे |" लहजे कि तल्खी छिपाने के लिए उन्होंने सामान्य से अधिक जोर से चाय को सुड़का |
" जी | पर आप भी इस माहौल में थोड़ा बाहर निकलना कम ही रखें सर |" विषय बदलने कि गरज से मैंने धीरे से कहा |
" ये रोग आज नहीं तो कल चला ही जाएगा | पर उस रोग का क्या जो इन ऑफिसों में पल रहा है बरसों से ! "
ढके हुए चेहरे के पीछे से झाँकती हताश बूढ़ी आँखों का ताप सह पाना अब मेरे लिए मुश्किल था | मैं दूसरी तरफ देखने लगा |
.
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।बहुत शानदार लघुकथा हुई है। हमारे देश के सरकारी कार्यालयों के जो काम काज के घिसे पिटे तरीके हैं उन पर अच्छा कटाक्ष किया है।
हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी
अच्छी लघुकथा और बेहतरीन कटाक्ष. हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.
लहज़े कि को लहज़े की पढ़ें।
"ये रोग आज नहीं तो कल चला ही जाएगा | पर उस रोग का क्या जो इन ऑफिसों में पल रहा है बरसों से ! " बहुत बड़ा तंज़ है ये हमारे लचर सिस्टम का। "प्रयास जारी है।" वाक्यांश आज के ज़माने में नकारात्मकता का प्रतीक है। आपका शिल्प लघुकथा में बेहतरीन उभर कर आया है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार आदरणीय मुज्ज़फर इकबाल जी I
आदाब। पाठक को पुनः झकझोरती व पुनर्विचार करने को उकसाती बढ़िया रचना आपकी सराही गई लेखन शैली में। हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा जोशी पाण्डेय साहिबा।
हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी I
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |