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दोस्ती का हक़ ( लघु- कथा ) -- डॉo विजय शंकर

रवि का फोन था , देखते ही उस में उत्साह सा आ गया , औपचारिक अभिवादन के बाद धन्यवाद देते हुए बोला , " हाँ , और थैंक्स , तूने बहुत ही अच्छी टिप्पणी लिखी मेरे लेख पर , वर्ना अधिकतर तो लोग बस खींच - तान में ही लगे रहते हैं , तुझे वाकई में मेरे तर्क सही लगे ? "
" ओह ! वो पिछले हफ्ते वाला , वो यार , मैंने पूरा पढ़ा तो नहीं था , पर अब तेरा नाम देखा तो इतना तो लिखना ही था , आखिर दोस्ती का कुछ तो हक़ होता ही है न ?"
जितने उत्साह से उसने फोन उठाया था वो धीरे धीरे ठंडा होकर एक गहरी निराशा में विलीन हो गया।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2016 at 3:49am
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , लघु-कथा को स्वीकृति प्रदान करने और बधाई क लिए ह्रदय से आभार एवं दगनयवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2016 at 1:26pm

आदरणीय विजय सर ..यथार्थ का बखूबी चित्रण किया है आपने ..इस लघु कथा के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 8:43pm
आदरणीय सौरभ पांडेय जी , रचना पर आपकी उपस्थिति एवं उसे स्वीकार कर पहचान देने के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद ,सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 8:38pm
सत्य से साक्षात्कार सत्य में विश्वास बढ़ाता है , सत्य सदैव सरल ही होता है ,हम ही उसे जाने-अनजाने जटिल मान लेते हैं।
सरल और सहज बोली गई बात उतनी ही आसानी से समझ में भी आती है।
रचना पर आपकी उपस्थिति एवं उसे स्वीकार करने के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , आदरणीय सुश्री राहिला जी ,सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 1:49pm

आम जीवन से लिए गये तथ्य जब शाब्दिक होते हैं तो ऐसी ही प्रस्तुतियाँ समक्ष होती हैं. आपकी संवेदनशीलता के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय विजय शंकर जी. साथ ही, एक अच्छी प्रस्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Rahila on June 9, 2016 at 11:00am
क्या बेहतरीन तरीके से सच उजागर कर दिया आपने । ऐसे ही एक बार एक पाठक ने जल्दी पढ़ने के चक्कर में मेरी एक रचना का अर्थ, अनर्थ कर दिया बाद में पूछती है कि वो रचना कुछ समझ नहीं आई । तो ऐसा होता है । बहुत बधाई आदरणीय सर जी! इस शानदार, सरल लेखन के लिये । सादर प्रणाम
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 8:28am
आदरणीय सुशील सरना जी , रचना पर आपकी सादर उपस्थिति एवं उसे मान देने के लिए आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Sushil Sarna on June 8, 2016 at 7:58pm

एक सच जिसे अपने बेखौफ अपनी लघु कथा में समाहित किया है। इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई आदरणीय सर। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 9:23am
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पांडेय जी , रचना को यथोचित मान देने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by pratibha pande on June 8, 2016 at 8:21am

आभासी दुनिया में ऐसे सच्चे मित्रों की कोई कमी नहीं ,आपकी ये रचना  आईना दिखा रही है ..हम सभी को   हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय ...सादर 

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