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संतुलन - डॉo विजय शंकर

जोड़-तोड़ खूब कर लेते हो।
जहां तोड़ लेना चाहिए ,
वहीं जोड़ लेते हो ,
समस्या को निपटा नहीं पाते ,
लिपटा लेते हो , गले लगा लेते हो।
उसी का राग अलापते हो ,
गीत गाते हो , छोड़ते नहीं ,
अलबत मौक़ा मिलते ही भुना लेते हो।
जिनको जोड़ लेना चाहिए ,
उन्हें भूले रहते हो।
संतुलन बनाये रखते हो।
कहते हो , राजनीति है ,
कर लेते हो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 707

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2016 at 10:52pm
आपको पसंद आया ,आभार , आदरणीय विजय निकोर जी , धन्यवाद , सादर।
Comment by vijay nikore on August 28, 2016 at 4:54pm

राजनीति का सुंदर चित्रण। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2016 at 1:34pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , संतुलन कविता पर उपस्थिति एवम प्रशस्ति हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2016 at 3:41pm

आदरणीय विजय सर  इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2016 at 2:06pm
आदरणीय सुश्री राहिला जी , संतुलन कविता पर आपकी उपस्थिति एवं प्रशस्ति हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2016 at 2:06pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , संतुलन कविता आपको अच्छी लगी , आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Rahila on August 25, 2016 at 1:37pm
बहुत खूब लिखा आपने आदरणीय सर जी!यही सत्य है आज का ।बहुत बधाई।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 9:35am

वर्तमान राजनीति पर बहुत सुन्दर कटाक्ष ! बहुत बधाइयाँ आदरणीय विजय भाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2016 at 9:10pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , संतुलन कविता आपको पसंद आई , आभार , सादर धन्यवाद के साथ , सदर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 23, 2016 at 8:21pm

विजय सर , जोड़ तोड़ बनाम संतुलन . वाह

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