वह ऑटो से उतरा, पैसे दिए और जल्दी से पीछे हट गया ,उसे डर था कि अभी ऑटो खूब ढेर सा धुंआ उसके सामने उगल कर चला जाएगा , पर ऐसा हुआ नहीं , ऑटो लहरा कर निकल गया, उसने गौर से देखा ऑटो सी एन जी वाला था। चारों तरफ फैले धुएं धुएं से उसे घुटन सी हो रही थी. जेब से कार्ड निकाल कर उसने पास खड़े कुछ एडजूकेटेड लोगों की और बढ़ कर पता पूछा , उन्होंने बड़ी शालीनता से उसी समझाया, वो जो ऊपर पांच चिमनियां देख रहें हैं , वो जिनसे काला काला धुअाँ निकल रहा है, हाँ, वही. उसने सर उठा कर देखा दूर दूर तक आसमान स्लेटी स्लेटी सा हो रहा था.
- वो तो आपकी अल्मुनियम की फैक्ट्री है, अल्मुनियम प्लेट्स बनाते हैं वो, वही जिससे प्रेशर कूकर बनते हैं, जिंदगी आसान, कह कर वह हस दिया।
- वह उसके साइड वाली , वह आपकी स्टील की फैक्ट्री है, यहां से नहीं दिखेगा, पास जाएंगे तो उनका खूब बड़ा सा बोर्ड दिखेगा। वही है.
उसका मन जोर से खांसने को हो रहा था , गला बिलकुल सूख गया था. तभी एक बूढ़ा सा आदमी, शायद कुछ पूछने उनकीं तरफ आ रहा था। उसके हाथ में बीड़ी थी , वह मुँह खोलता उसके पहले वो सज्जन चिल्ला पड़े , बीड़ी उधर, बीड़ी उधर, मेरी जान लोगे क्या भैया , आप लोग , बाज नहीं आते , दिन भर बीड़ी फूंकते हो, अपने साथ साथ दूसरों की जान के भी दुश्मन बने रहते हो , हम से बात करनी है तो बीड़ी उधर फेंक कर आओ.
बीड़ी तो उस बूढ़े ने फेंक दी , पर उनकें पास आने के बजाय दूसरी तरफ निकल गया, वह सोंच रहा था , बीड़ी तो उसके पिताजी, दादा भी पीते थे, पर तब तो कौनों की सांस नहीं फूलत रही, हाँ तब शायद यह इतनी ढेर सारी धुंआ उगलत फैक्टरियां नाहीं रहीं।
वह सज्जन अभी भी बड़बड़ा रहे थे , यार इनके लिए कुछ भी कर दो , ये नहीं सुधरेंगे. बीड़ी जरूर पिएँगे. किसी की जान की फ़िक्र नहीं है इन्हें ।
उधर चिमनियों से बड़ी तेजी से काले धुएं का झोंका निकल रहा था, शायद भट्टी में कोयला डाला गया था.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , इस ज्वलंत समस्या पर आपकी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है, विचारणीय है, सहभहगीता के लिय आभार एवं धन्यवाद। सादर।
अच्छी कहानी है आ० डॉ० विजय शंकर जी,वातावरण में आजकल कितनी फेक्ट्रियां वायु प्रदूषित कर रही हैं जो हमारी साँसों में जाती है उनका कोई सुधार नहीं होता इंसान को तो हर हाल में इनका शिकार होना ही है अब नहीं तो तब अच्छा कटाक्ष किया है ,बहुत बहुत बधाई
जी आदरणीय विनय कुमार जी, वैसे बात इससे भी आगे है, इस सतत कृत्रिम आपदा से बचाव के लिए लोगों से धूम्रपान न करें कह कर आप दायित्व से मुक्त हो गये. समस्या जो गलत नीतियों का परिणाम है वह ज्यों की त्यों बनी रही और बढ़ती रही. क्या व्यवस्था का यही दायित्व है कि लोगों को आगाह करे और सारी जिम्मेदारी उन्हीं पर छोड़ दे. सही समाधान हुआ कंहाँ ?
आपने रचना को समय दिया, समस्या पर ध्यान दिया, आपके प्रति आभार, सादर।
प्रिय कृष्ण मिश्रा जी,रचना आपको अच्छी लगी ,आपका आभार, धन्यवाद सादर.
एक बहुत अच्छे विषय पर उम्दा प्रस्तुति । सचमुच बड़े गुनहगारों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता और छोटे दोषियों को सब पकड़ते हैं । आज के सन्दर्भ में बहुत अच्छी रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीय..
वायुं प्रदूषण पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुयी है आ० vijai shanker सर! हार्दिक बधाई! सादर!
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी, आभार, धन्यवाद सादर.
आदरणीय महिर्षि त्रिपाठी जी,आपने सही बिन्दु लिया है, मेरा प्रयास भी यही है कि वायु - प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या है, जिसे रोकने के लिए बीड़ी -सिगरेट पीना प्रतिबंधित करके कुछ ख़ास नहीं होने वाला है , मूल समस्या ये लगातार धुंआ फैलाती औद्योगिक चिमनियां हैं जिन पर कुछ करने की आवशयक्ता है. वरना ख़तरा तो नित दिन बढ़ता जा रहा है. मूल समस्या से लड़ने की आवश्यकता है, हम कुछ कर रहें हैं यह मात्र दिखाने से कुछ नहीं होने वाला. विषय पर जाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, सादर.
प्रदूषण के प्रभावों पर एक प्रभावी पड़ताल . जय हो . सादर .
बीड़ी तो उसके पिताजी, दादा भी पीते थे, पर तब तो कौनों की सांस नहीं फूलत रही, हाँ तब शायद यह इतनी ढेर सारी धुंआ उगलत फैक्टरियां नाहीं रहीं।,,,,
क्या खूब लिखा है आपने आ. Dr. Vijai Shanker जी ,,,,,,सच है ,,मेरे हिसाब से आपकी लघुकथा इस सन्दर्भ में भी ली जा सकती है ,,आदमी अपनी कमी को नही देखते मगर अगर वही गलती कोई अन्य पुरुष करता है ,,तो उसमें तमाम दोष दिख जाते हैं ,,,क्या मेरा ये सन्दर्भ भी सही है ??
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