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पहचान - डॉo विजय शंकर

  हीरा - क्या ज़माना आ गया , लोगों को बताना पड़ता है , मैं हीरा हूँ , हीरा। बड़ा महंगा होता ही हीरा।

          मेरी चमक दूर दूर तक जाती है. कभी राज के राज तबाह हो जाते थे हमारे लिए.

          एक नज़र हमें देख कर लोग अपने नसीब को सराहते थे।
         रानी - राजकुमारियों को हमारे हार ही सुहाते थे।
         ( आह भर कर ) अब तो जैसे कोई हमें चाहता ही नहीं। पहचानता भी नहीं.    

   कोयला - हाँ भाई , बात तो सही है, पर मेरे भाई , वक़्त वक़्त की बात होती है, अब तो हमारा ज़माना है.
             कहीं भी रहें कालिख छोड़ते हैं, एक हाथ से दूसरे में जाएँ , दोनों को काला करते हैं।
             हमारी दलाली में लोग बदनाम भी होते हैं, फिर भी खूब करते हैं.
             राज तो हम भी पलट देते हैं.
             और हाँ, ( थोड़ा हस कर ) हमें अपनी पहचान किसी को बतानी नहीं पड़ती। क्या राजा क्या रंक सब हमें जाने हैं. 

       मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2015 at 11:00am

बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी, सादर। 

Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:17am

बहुत ही सुन्दर व्यंग्य। हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 8:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी उत्साहवर्धक  प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 8:12pm

आदरणीय श्री सुनील जी, आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:25pm

आदरणीय विजय भाई , खूब व्यंग्य किया है , आदरणीय हार्दिक बधाई आपको ॥ 

Comment by shree suneel on June 8, 2015 at 1:36am
आदरणीय डा0 विजय सर, अच्छी लघु-कथा कही अापने. कोयले ने ठीक हीं कहा...
इस सार्थक लघु-कथा के लिए बधाईयां आपको.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:16pm

प्रिय कृष्ण जी, आपकी उपस्थिति अच्छी लगती है, आपको रचना पसंद आई, आभार,आपकी हार्दिक बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद  सादर,. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:13pm

प्रिय जितेंद्र जी, आपकी उपस्थितिअच्छी लगती है, आपको रचना पसंद आई, आभार,बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद  सादर,. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:10pm

आदरणीय मोहन सेठी जी, प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार,सच में क्या  ऐसा नहीं लगता कि जहां कालिख है वहीँ मौज वहीँ चमक है, टिप्पणी हेतु  धन्यवाद, सादर।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:07pm

आदरणीय महिर्षि त्रिपाठी जी, प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार एवं धन्यवाद, सादर।  

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