For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहचान - डॉo विजय शंकर

  हीरा - क्या ज़माना आ गया , लोगों को बताना पड़ता है , मैं हीरा हूँ , हीरा। बड़ा महंगा होता ही हीरा।

          मेरी चमक दूर दूर तक जाती है. कभी राज के राज तबाह हो जाते थे हमारे लिए.

          एक नज़र हमें देख कर लोग अपने नसीब को सराहते थे।
         रानी - राजकुमारियों को हमारे हार ही सुहाते थे।
         ( आह भर कर ) अब तो जैसे कोई हमें चाहता ही नहीं। पहचानता भी नहीं.    

   कोयला - हाँ भाई , बात तो सही है, पर मेरे भाई , वक़्त वक़्त की बात होती है, अब तो हमारा ज़माना है.
             कहीं भी रहें कालिख छोड़ते हैं, एक हाथ से दूसरे में जाएँ , दोनों को काला करते हैं।
             हमारी दलाली में लोग बदनाम भी होते हैं, फिर भी खूब करते हैं.
             राज तो हम भी पलट देते हैं.
             और हाँ, ( थोड़ा हस कर ) हमें अपनी पहचान किसी को बतानी नहीं पड़ती। क्या राजा क्या रंक सब हमें जाने हैं. 

       मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2015 at 11:00am

बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी, सादर। 

Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:17am

बहुत ही सुन्दर व्यंग्य। हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 8:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी उत्साहवर्धक  प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 8:12pm

आदरणीय श्री सुनील जी, आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:25pm

आदरणीय विजय भाई , खूब व्यंग्य किया है , आदरणीय हार्दिक बधाई आपको ॥ 

Comment by shree suneel on June 8, 2015 at 1:36am
आदरणीय डा0 विजय सर, अच्छी लघु-कथा कही अापने. कोयले ने ठीक हीं कहा...
इस सार्थक लघु-कथा के लिए बधाईयां आपको.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:16pm

प्रिय कृष्ण जी, आपकी उपस्थिति अच्छी लगती है, आपको रचना पसंद आई, आभार,आपकी हार्दिक बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद  सादर,. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:13pm

प्रिय जितेंद्र जी, आपकी उपस्थितिअच्छी लगती है, आपको रचना पसंद आई, आभार,बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद  सादर,. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:10pm

आदरणीय मोहन सेठी जी, प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार,सच में क्या  ऐसा नहीं लगता कि जहां कालिख है वहीँ मौज वहीँ चमक है, टिप्पणी हेतु  धन्यवाद, सादर।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2015 at 9:07pm

आदरणीय महिर्षि त्रिपाठी जी, प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार एवं धन्यवाद, सादर।  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service