For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभी जरा मैं धनुष सजा लूं  फिर आता हूँ  

विष से थोड़े विशिख बुझा लूं फिर आता हूँ I

 

सोने की लंका बनती है तो  बन जाने दो

रावण का डंका घहराता है  घहराने  दो

धर्म शास्त्र खंडित होते हैं  मत घबराओ  

छा रहा यज्ञ का धूम मलिन तो  छाने दो

 

लेकिन हो रहा सतीत्व हरण यदि नारी का

लूटा  जाता है सर्वस्व किसी  सुकुमारी का

तो अग्निबाण  मेरा अणु-बम सा फूटेगा

मैं प्रत्यंचा खींच धनुष की अब आता हूँ I

 

 

राक्षस था पर उसने  सीता  को छुआ नही

छल किया नहीं, खेला कोई भी जुआ नही

बस प्रणय निवेदन करता था धमकाता था

दुर्धर्ष आचरण कोई भी तो  हुआ नहीं

 

पर नर होकर अभिनव बसंत  जिसने लूटा  

वह बचे के मेरा बाण अभी सत्वर छूटा

शत-शत रावण को प्राण दान  मैं दे दूंगा

तुझको कोई क्षमा नहीं शठ ! मैं आता हूँ I

 

 

यह धरती पहले भी  कितना थर्राई थी   

तब  शपथ राक्षस के विनाश की खाई थी

अब समय आ गया सर्वनाश इनका भी हो 

मुझसे कहने निर्भया विकल इक आयी थी 

 

मैं राम, सदा अविराम भला चुप बैठूंगा

अगर समस्या है अशेष तह तक पैठूंगा   

अमिय-कुंड फिर भस्म करूंगा रावण जैसा

साध रहा शर प्रत्यंचा में  बस आता  हूँ I

 

(मौलिक /अप्रकाशित ) 

 

 

 

Views: 584

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 31, 2019 at 2:07pm

आदाब। बेहतरीन तीखा व विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 31, 2019 at 12:43pm

विजय निकोर जी  सादर आभार 

Comment by vijay nikore on December 30, 2019 at 6:24am

आपकी रचना बहुत ही अच्छी लगी। बधाई, मित्र गोपाल नारायन जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2019 at 6:16pm

आ० सरना जी . अनुग्रहीत हूँ I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2019 at 6:15pm

आ० धामी जी , आभार i 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2019 at 6:15pm

आ० समर कबीर जी, सुधार कर दिया है I  सादर I 

Comment by Sushil Sarna on December 24, 2019 at 6:39pm

वाह अति सुंदर और सार्थक सृजन आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , दिल से बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2019 at 2:52pm

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

'अभी जरा मैं धनुष सजा लूं  फिर आता हूँ  

 बुझे हुए विष बाण सजा लूं  फिर आता हूँ'

इन पंक्तियों में तुकांतता क्या है?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 19, 2019 at 7:55am

आ. भाई गोपाल नारायण जी, सादर अभिवादन । इस रचना को पढ़ मन आनंदित हुआ। ओज भरती इस बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service