For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आशंका  के  कगार

जानता हूँ

हर पिघलती सचाई में

फीकी सचाई के पार

कुछ झुठाई भी है

तभी तो आशंका की परतों के बीच

किसी भी परिस्थिति को परखते

किसी का झूठ जानते हुए भी

सचाई की लाश को मानो

थपकियाँ देते

कभी खिड़की का शीशा

कभी मन काआईना

कोना-कोना साफ़ करते

खिसक जाते हैं दिन

ज़िन्दगी हाथ फैलाए

मांगती है हिसाब

सारी सफ़ाई के बाद भी क्यूँ

किसी की दी सचाई पर फिर भी

आशंका की बारीक

पतली परत बाकी रह जाती है

फैलने लगता है रुधिर कोशों में

शनै: शनै: असत्य का ज़हर

ऐसे में न पूछो

बहुत मुद्दतों के बाद भी क्यूँ

उन्मन मन

चेहरा गहरा उदास

कर देता है हँसने से

साफ़ इनकार

      ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 446

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 10, 2020 at 7:37am

मेरे भाई समर कबीर जी, आपका इस सुन्दर संदेश का उत्तर देना रह गया। आज अपनी पूर्व पोस्ट पर गया तो गलती का एहसास हुआ।क्षमाप्रार्थी हूँ, और आपसे मिली सराहना के लिए आभारी हूँ।

Comment by Samar kabeer on November 25, 2019 at 2:28pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक शानदार कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on November 24, 2019 at 1:11am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणेय मित्र तेज वीर सिंह जी।

Comment by vijay nikore on November 24, 2019 at 1:10am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणेय मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 20, 2019 at 1:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे जी।बेहतरीन प्रस्तुति।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 20, 2019 at 4:18am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। इस उत्तम रचना के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 20, 2019 at 4:15am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। इस उत्तम रचना के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
8 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service