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काँच के टुकडों में दे दे ज्यों कोई बच्चा मणी
आधुनिकता में कहीं खोया तो है कुछ कीमती।
हुस्न की हर सू नुमाइश़ चल रही है जिस तरह
बेहयाई दफ़्न कर देगी किसी की शायरी।
ताश, कन्चें, गुड्डा, गुड़िया छीन के घर मिट्टी के
लाद दी हैं मासुमों पर रद्दियों की टोकरी।
अब कहाँ हैं गाँव में वें पेड़ मीठे आम के
वे बया के घोसलें, वे जुगनुओं की रौशनी।
ले गयी सारी हया पश्चिम से आती ये हवा
घाघरा, कुर्ती, दुपट्टा, लहंगा, साड़ी, ओढ़नी।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Comment
शुक्रिया आदरणीय समर जी..स्नेह बनाये रखें..
// "वे बयाँ के घौसले वे जुगनुओं की रोशनी" इस शे'र में वे शब्द की जगह वो का इस्तेमान कैसा रहेगा? "//
सहमत हूँ आपसे,बृजेश जी ।
बढ़िया आदरणीय राहुल जी...मैं आपसे और आदरणीय समर कबीर जी से राय चाहता हूँ.."वे बयाँ के घौसले वे जुगनुओं की रोशनी" इस शे'र में वे शब्द की जगह वो का इस्तेमान कैसा रहेगा? "
आदरणीय राहुल दांगी जी, आदाब. ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें. बाक़ी आदरणीय समर कबीर साहब ने अपनी बहुमूल्य प्रक्रिया दे दी है. सादर
जनाब राहुल डांगी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' काँच के टुकडों में दे दें ज्यों कोई बच्चा मणी'
इस मिसरे में 'दे दें' को "दे दे" कर लें ।
' हुस्न की हर सू नुमाइश़ चल रही हैं जिस तरह'
इस मिसरे में 'नुमाइश' एक वचन है,इसलिए 'हैं' को "है" कर लें ।
' लाद दी हैं मासुमों पर रद्दियों की टोकरी'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।
' वे बयाँ के घोसलें, वे जुगनुओं की रौशनी'
इस मिसरे में 'बयाँ' को "बया" कर लें ।
' ले गयी सारी हया पश्चिम से आती हुई हवा'
ये मिसरा लय में नहीं है,देखें ।
वक्त की स्थिति को उजागर करती खुबसुरत रचना, बधाई स्वीकारे
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