For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

122 122  122 12

उठे हैं किसी को गिरा के मियाँ
चले पाग सर पे सजा के मियाँ।1

कहा था, डरेगा न कोई यहाँ
रहे खुद को हाफ़िज बना के मियाँ।2

रहेगा न सूखा शज़र एक भी--
कहें नीर सारा सुखा के मियाँ।3

मिटी भूख उनकी हुए सब सुखी
चहकते चले माल खा के मियाँ।4

किये लाख सज़दे, मिले कब सनम?
गये थे कभी सर नवा के मियाँ।5

पढ़ाने चले पाठ बन हमनवा
घरों को यहाँ पे जला के मियाँ।6

क्या तकरीर करते खड़े सामने
इसी ठाँव बातें बढ़ा के मियाँ।7

निगाहें झुकाये रियाया खड़ी
हँसे आज नजरें उठा के मियाँ।8

गये दिन बहुत याद करते नहीं
टिके हैं हमी को लड़ा के मियाँ।9
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 3, 2018 at 9:00pm

आपका आभार आदरणीय छोटेलाल सिंह जी।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 3, 2018 at 2:05pm

आदरणीय मनन सिंह जी उम्दा गजल लिखने के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Manan Kumar singh on October 30, 2018 at 10:17am

आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण भाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2018 at 4:58am

आ. भाई मनन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 10:01pm

आभारी हूँ आदरणीय बलराम जी।

Comment by Balram Dhakar on October 29, 2018 at 8:40pm

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, आदरणीय मनन कुमार जी।

बहुत बहुत बधाई।

सादर।

Comment by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 7:20pm

आदरणीय राज नवादवी जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया।

Comment by राज़ नवादवी on October 29, 2018 at 6:46pm

आदरणीय मनन कुमार जी, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर. 

Comment by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 5:47pm

आदरणीय समर साहिब,नमन व शुक्रिया।मैं एतदजनित संशोधन करता हूँ,शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on October 29, 2018 at 5:17pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

'निगाहें झुकाये रियाया खड़ी'

इस मिसरे में 'रियाया' ग़लत शब्द है, सहीह शब्द है "रिआया"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"  कृपया  दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति 'रहे एडियाँ घीस' को "करें जाप…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"पनघट छूटा गांव का, नौंक- झौंक उल्लास।पनिहारिन गाली मधुर, होली भांग झकास।। (7).....ग्राम्य जीवन की…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"    गीत   छत पर खेती हो रही खेतों में हैं घर   धनवर्षा से गाँव के, सूख गये…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"गांव शहर और ज़िन्दगीः दोहे धीमे-धीमे चल रही, ज़िन्दगी अभी गांव। सुबह रही थी खेत में, शाम चली है…"
17 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"सादर अभिवादन "
Friday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"स्वागतम"
Friday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत शुक्रिय: जनाब अमीरुद्दीन भाई आपकी महब्बतों का किन अल्फ़ाज़ में शुक्रिय:  अदा…"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service