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भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।।
लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।1
महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।
दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।2
इस बस्ती में मुझको तन्हा मत छोडो ।
लुट जाते हैं लोग यहाँ वीराने में ।।3
वह भी अब रहता है खोया खोया सा ।
कुछ तो देखा है उसने दीवाने में ।।4
होश गवांकर लौटा हूँ मैख़ानों से।
जब उभरा है अक्स तेरा पैमाने में ।।5
वक्त मुदर्रिस बनकर ही समझायेगा ।
जाया मत कर जोश उसे समझाने में ।।6
जेब और सत्ता से है उनका रिश्ता ।
कौन सुनेगा बात तुम्हारी थाने में ।।7
राज़ खोलती मक्तूलों की आँखें सब ।
देर लगी है राहत को पहुँचाने में ।।8
महँगी है बाज़ार मुहब्बत की यारो ।
आशिक बिकते इश्क़ यहां फरमाने में ।।9
कैसे कह दूँ है दुनिया महफूज़ तेरी ।
मिलते हैं बारूद बहुत तहखाने में ।।10
मत छोड़ो कल पर कामों का बोझ कभी ।
आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में ।। 11
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
वाह शानदार आगाज आपका , बहुत बहुत बधाई आपको
आ0 तेजवीर सिंह साहब ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया / आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।लाज़वाब गज़ल।
मत छोड़ो कल पर कामों का बोझ कभी ।
आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में ।।
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