For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता (ग़ज़ल 'राज')

1212  1212  1212  12

बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता 
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता

चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर 
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता 

उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर 
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता

पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों 
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता

किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का 
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता

उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से 
बढ़ी जो अपनी दूरियां ख़ुदा न ख़्वास्ता

मिलेगा ख़ास इक सुकूं मेरे रफ़ीक को 
गिरे मेरा जो ये मकां ख़ुदा न ख़्वास्ता 

राजेश कुमारी राज 

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2018 at 7:36pm

आद० बृजेश कुमार जी आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2018 at 7:33pm

आद० गुमनाम जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हो गई बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ 



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2018 at 7:33pm

आद० लक्ष्मण धामी भैया आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हो गई बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ 

Comment by Neelam Upadhyaya on June 11, 2018 at 4:21pm

आदरणीया राजेश जी, नमस्कार । खूबसूरत गजल के लिए दिली मुबारकबाद ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 10, 2018 at 12:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।बेहतरीन गज़ल |

उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर 
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता

Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2018 at 10:54am

आदरणीय राजेश मैम, कठिन बह्र में एक कठिन रदीफ़ ले कर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने. पर आप जिस स्तर की ग़ज़लें लिखतीं हैं उस हिसाब से यह ग़ज़ल अभी और बेहतर हो सकती है. यह गुंजाइश मतले में भी मौजूद है. //बढ़ी जो अपनी दूरियां ख़ुदा न ख़्वास्ता// यहाँ पर "बढ़ी" की जगह "बढीं" होना चाहिए. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by रक्षिता सिंह on June 9, 2018 at 11:28pm

आदरणीया राजेश जी नमस्कार,

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ....बहुत-बहुत मुबारकबाद ।

Comment by Satyanarayan Singh on June 9, 2018 at 9:08pm

वाह आदरणीया बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुयी है सादर बधाई 

Comment by Mohammed Arif on June 9, 2018 at 6:53pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी। आदाब,

                                  बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र प्रभावशाली । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 9, 2018 at 3:04pm

वाह वाह आदरणीया बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
10 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service