पानी-पानी ...
ख़ून
ख़ून से ही
कतराता है
मगर
पानी से मिल जाता है
इसीलिये
रिश्ता
ख़ून का
हो जाता है
पानी-पानी
ख़ून के सामने
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया Neelam Upadhyaya जी सृजन अपनी वाह से प्रशंसित करने का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील जी, बहुत ही प्रभावशाली रचना । प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।
आदरणीय अजय \तिवारी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब .... प्रस्तुति के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब , आदाब। ... सृजन की काव्यात्मक प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन अपनी वाह से प्रशंसित करने का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील जी, इस प्रभावशाली काव्य-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
इसका सघन नियंत्रित शिल्प बहुत अच्छा लगा.
सादर
जनाब सुशील सरना जी आदाब,कम शब्दों में बहुत उम्दा कविता,बहुत ख़ूब, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही महत्वपूर्ण व सारगर्भित क्षणिका सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सुशील सरना जी।
कुछ मेरी पंक्तियां यूं ही :
जब
ख़ून
काम आता है
अपने या
अपने जैसे ख़ून के
ख़ून
कर देता है
दुश्मनी, नाइत्तेफाकी का।
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वाह! सुंदर और सार्थक रचना हुई है आदरणीय सुशिल सरना जी | हार्दिक बधाई स्वीकारें |
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