मानव से इतर
तीतर-बीतर
कौए-कबूतर
शेर-चूहे
सपना-परिकल्पना
कछुआ-खरग़ोश
होश-बेहोश
जड़-चेतन, मूर्त-अमूर्त
भूत प्रेत-एलिअन
जिनके
सजीव-निर्जीव पात्र
मानवीय आचरण में
सज्जन-दुर्जन
मानव-संवाद
तंज/कटाक्ष
यथार्थ सी कल्पना
प्रतीकात्मक
बिम्बात्मक
बोधात्मक
सार्थक सर्जना
व्यंजना-रंजना
कल्पना-लोक-भ्रमण
सार्थक
मानवेतर
कथा या हो लघुकथा सृजन!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सोमेश कुमार जी और बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
लघुकथा लेखन की एक विधा है "मानवेतर" शैली! जिसमें मूर्त-अमूर्त या पशु--पक्षी/निर्जीव चीजों के मानवीकरण या बिम्बों में कोई लघुकथा कही जाती है किसी तंज/कटाक्ष/शिक्षा/ बोध हेतु। सादर।
आदाब।
तीतर (पक्षी) बीतर---(मात्र तुकबंदी , यहां कबूतर लिख सकते थे) तुकबंदी वाले किसी और पक्षी/पशु.. का नाम सुझाइये!
ब्लॉग स्पॉट में शीर्षक पढ़कर पहले तो उलझन हुई की आखिर यह कौन सी रचना है पर पढ़कर ज्ञात हुआ की मानवजीवन के साहित्यिक पक्षों को बिबों और प्रतीकों के जरिए पहचानने का प्रयास किया गया है |
अच्छी रचना है |मुबारकबाद कबूल करें |
उम्दा कविता हुई आदरणीय..
पक्षी केलिए 'तीतर' और "बीतर"?
बिल्कुल सही कहा है आपने। बहुत-बहु शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब। पक्षी के लिए 'तीतर' शब्द लिया है प्रतीकात्मक रचना के लिए!
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा अतुकान्त कविता,शब्दों का खेल,ग़ज़ल हो या कविता या लघुकथा,सब शब्दों का खेल ही तो है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
दूसरी पंक्ति में 'तीतर-बीतर' को "तितर बितर" कर लें ।
इतने ग़ौर से रचना को पढ़ने और अनुमोदन के साथ हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही शानदार , प्रभावोत्पादक और सशक्त कविता । शब्द विन्यास क्या ख़ूब ढूँढकर लाएँ हैं आप । शब्दों का क्रमश: उचित चयन काबिले तारीफ है और साथ ही साथ कविता में पीछा करता कटाक्ष भी । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
आज सुबह एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली ।
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