(मफ़ाईलुन -मफ़ाईलुन- फ़ऊलन)
मैं क़िस्मत आज़माई कर रहा हूँ |
शुरूए आशनाई कर रहा हूँ |
चुरा कर वो नज़र कहते यही हैं
मैं उनसे बेवफ़ाई कर रहा हूँ |
दिया है सिर्फ़ शीशा एब जू को
मैं कब उसकी बुराई कर रहा हूँ |
जमी जो धूल दिल के आइने पर
उसी की मैं सफ़ाई कर रहा हूँ |
सितमगर सिर्फ़ हक़ माँगा है अपना
मैं कब बेजा लड़ाई कर रहा हूँ |
परख लेना कभी भी वक़्ते मुश्किल
नहीं मैं ख़ुद नुमाई कर रहा हूँ |
किसे तस्दीक़ है अंजाम का डर
मैं आगाज़े रसाई कर रहा हूँ |
एबजू --कमी ढूँढने वाला
आशनाई --दोस्ती , मुहब्बत
खुद नुमाई --शेखी बघारना
रसाई --पहचान , उल्फ़त
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का बहुत बहुत शुक्रिया |
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर
मुहतरम जनाब विजय साहिब ,ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
//किसे तस्दीक़ है अंजाम का डर
मैं आगाज़े रसाई कर रहा हूँ |//...
वाह, ऐसी गज़ल से दिल खुश हुआ। आपको बधाई, तस्दीक़ अहमद साहिब।
मैंने भी मुशायरे को और आप सब को बहुत याद किया,आप सबकी दुआओं से अब तबीअत कुछ बहतर है, ओबीओ ज़िंदाबाद ।
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल में शिरकत और आपके मशवरे का बहुत बहुत शुक्रिया। बेहद खुशी हुई आप सेहत याब हो कर वापस ओ बी ओ से जुड़ गए , आपके बग़ैर इस बार मुशायरे का प्रोग्राम फीका फीका रहा ।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'परख लेना कभी भी वक़्ते मुश्किल
नहीं मैं ख़ुद नुमाई कर रहा हूँ'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'कभी' शब्द के साथ 'भी' का इस्तेमाल मुनासिब नहीं लगता,इस शैर को चाहें तो यूँ किया जा सकता है :-
'परख लेना कभी तू वक़्त-ए-मुश्किल
कहाँ मैं ख़ुद नुमाई कर रहा हूँ'
जनाब नरेंद्र चौहान साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब राम अवध साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
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