For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिस्से की जमीन (लघुकथा)

कमरे में घुसकर उसने रूम हीटर ऑन किया। तभी उसे दोबारा कुतिया के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह हॉस्पिटल की भागमभाग से बहुत अधिक थका हुआ था जिसके कारण उसकी इच्छा तुरन्त सोने की हो रही थी लेकिन कुतिया की लगातार दर्द औऱ कराहती आवाज उसकी इच्छा पर भारी पड़ी।

सोहन बाहर आकर इधर-उधर देखा। बाहर घना कुहरा था जिसकी वजह से बहुत दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। स्ट्रीट लाइट का प्रकाश भी कुहरे के प्रभाव से अपना ही मुँह देख रहीं थी। बर्फीली हवा सर्दी की तीव्रता को और बढ़ा रही थी जिससे ठंडी बदन के आखिरी छोर तक पहुँच रही थी। सोहन सड़क पर चारो ओर देख रहा था कि उसकी नजर सड़क के किनारे फटे बोरे और प्लास्टिक के बीच काँपती कुतिया पर पड़ी। पहले तो उसने सोचा कि अत्यधिक ठंड से यह काँप रही है पर पास जाकर देखा तो माजरा समझ मे आ गया।

कुतिया प्रसव पीड़ा में थी। उसे खुले आकाश के नीचे कपकपाती सर्दी में बच्चा देते देख सोहन एक बार तो सिहर गया। कुतिया की बेवशी उसे अंदर तक झकझोर रही थी। उसे गाँव में बिताया अपना बचपन याद आ गया जब भूसे के घर में, पुआल की छाँव में या पेड़ पौधे के सघन झुरमुटों के बीच हर तरह से सुरक्षित होकर कुतिया बच्चे देती थी, जहाँ उसके लिए व्यापक परिस्थितिकी उपलब्ध होती थी। पर यहाँ शहर में ऊँचे ऊँचे अट्टालिकाओं और हाई प्रोफाइल लोगों के बीच उसके लिए सिवाय सड़क अब और कोई जगह शायद है भी नहीं।

विगत दो दिनों से सोहन अपनी पत्नी को लेकर हॉस्पिटल में व्यस्त रहा था और आज ही उसे पुत्री प्राप्ति हुई थी। उसने प्रसव पीड़ा के साथ उस क्षण होने वाली परेशानियों को बहुत गहराई से महसूस किया था। कुतिया को ऐसी दशा में देख कुछ समय पहले का हॉस्पिटल का एक एक दृश्य उसके आंखों के सामने तैरने लगा। बस अंतर इतना कि वहाँ एक मानव का बच्चा जन्म ले रहा था जिसके पीछे तमाम सुख सुविधाओं के साथ साथ हॉस्पिटल में डॉक्टरों और नर्सों की फौज खड़ी थी और यहाँ एक जानवर खुले आकाश के नीचे बिना किसी सहायता के बच्चे देने के लिए मजबूर है, या यूँ कहें कि मानव ने ही उसे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया है।

सोहन की मानवीय सम्वेदना इस समय उफान पर थी। उसने अपने घर के एक कोने में कुतिया के लिए जगह बनाकर उसे सुरक्षित किया। जब हर तरह से सन्तुष्ट हो गया तो सोने चला गया।

पर अब सोहन के आंखों में नींद कहाँ? उसका मन अनन्त प्रश्नों के भंवरजाल में उलझ चुका था। वह बार बार अपने से प्रश्न कर रहा था कि आखिर यह धरती केवल मानव की तो बपौती नहीं? फ़िर हर जगह इंसानों ने ही कब्जा क्यों जमा लिया? एक तरफ जंगलों को काट कर जानवरों से उनके निवास स्थलों को छीन लिया तो दूसरी ओर वहीं नगरीय संस्कृति में उनके लिए कोई वास नहीं छोड़ा। इंसान दिन प्रतिदिन अपने को एक से बढ़कर एक बेहतर सुख-सुविधाओं से लैश कर रहा है पर इनके बीच क्या वह किसी और के बारे में भी सोच रहा है? ईश्वर ने इन्सान और जानवरों को एक दूसरे का पूरक बनाया था पर स्वार्थ में अंधा हो इंसान सिर्फ अपने लिए क्यों जीने लगा है?

सोहन को ऐसा लग रहा था जैसे सभी जानवर समवेत स्वर में उससे यहीं पूछ रहे हों- "भाई! इंसानों के बीच इस धरती पर हमारे हिस्से की जमीं कहाँ है"?


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 608

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 3:20pm

सुंदर कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nita Kasar on January 4, 2018 at 3:18pm

अपने लिये सुविधाओं की परवाह करते हुये इंसानों ने जानवरों के हिस्से की जमीन हड़प ली ।कितना दुखद है मानव होकर मानवता के आभास का ना होना ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:42pm

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। लघुकथा में मैंने आपसे बहुत कुछ सीखा है। आपकी उपस्थिति और हौसला अफ़जाई के लिए कोटिश आभार आपका। सादर

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:40pm

आद0 सलीम रज़ा साहब सादर अभिवादन। लघुकथा पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ।इसे कहानी में बदलना नहीं चाह रहा था इसलिए यहीं लाकर छोड़ दिया। आपकी बेहतरीन प्रतिक्रिया और बधाई के लिए हृदय तल से आभार

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:38pm

आद0 नीलम उपाध्याय जी सादर अभिवादन।लघुकथा पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपकी बधाई संदेश का।सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:54am

बहुत सुंदर। उपरोक्त टिप्पणियों में सब कुछ कह दिया गया है। इस बढ़िया रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 7:19pm
सुरेंद्र जी बहुत खूबसूरत कथा हुई है. मेरे ख्याल से इस लघुकथा को कथा में परिवर्तित कर सोहन को उसे मदद करते दिखाना चाहिए जिससे जनवरों के प्रति प्रेम दिखे... बहुत अच्छा सब्जेक्ट है... बधाई
Comment by Neelam Upadhyaya on January 3, 2018 at 12:08pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, नमस्कार । आज की मशीनी जिंदगी जी रहे समाज में इंसान में संवेदना मार्टी जा रही है । एक जानवर के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित करती बहुत ही अच्छी लघु कथा । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 3, 2018 at 6:29am

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। निश्चय ही कथानक थोड़ा लम्बा है, पर विषय विशारद होने के कारण छोटा करना उचित नहीं समझा। आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई से बल मिला है। आपका हृदय तल से आभार।

Comment by Mohammed Arif on January 2, 2018 at 8:31pm

आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,

                           काफी लंबे कथानक को खींचा आपने । यह लघुकथा रेखांकित करती है कि मानव और जानवर के बीच धरती के बँटवारे में प्रजनन की समस्या भी विकट होती जा रही है । आजकल जानवरों को भी प्रजनन हेतु मुश्क़िलों का सामना करना पड़ रहा है ।मानव ने अपने चारों ओर पैर पसार लिए हैं । इंसानी जनसंख्या का साम्राज्य पर्यावरण और प्राणियों के लिए ख़तरा बन गया है । अच्छी संवेदनामूलक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
20 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service