'देख लूँगा स्साले को।'
-अरे क्या हुआ?कुछ बोलोगे भी?
-हम कालाबाजारी वाला केस जीत गये।
-बल्ले-बल्ले रे भइये।इ तो नच बलिये हो गवा।
-बाकिर वकीलवा पेंच फँसा रहल बा नु।
-उ का?
-उहे फ़ीस के लफड़ा।
-उ त सब फरिआइये गइल रहे।सात बरिस के फ़ीस एकमुश्ते देवे के रहे।
-हँ भाई, पूरे अठाईस गो सुनवाई भइल बा।
-त अठाइस हजार रुपिया भइल,आउर का?दियाई उनके।
-ना नु भाई,उ अब अबहीं के हिसाब से फ़ीस जोड़ ता। चार हजार रुपैया फी पेशी।
-बात त हजारे रुपया पेशी के भइल रहे।उ पगलाइल बा का?
-कहत रहे कि लॉस हो जाई?
-कइसे?
-ओकर फ़ीस अब बढ़ गइल बा।
-दुमुँहा बा इ ससुरा।उ अँइचे वकीलवा ठीक बा।
-उ कइसे?
-टू जी कुछो होला नु।उ ओमे 'जीरो लॉस' के बात कहता। बबुआ कहत रहे', भोला बोला।
-त ठीके बा ओ दुनु के मिला दियाई।अब अइसन केस सिबुए के दियाई',गणेश ने निर्णय सुना दिया।
-आरे इ चोर-चोर मउसेरा भाई होलन सन।सरकारी खजाना के बात दूसर बा,एकनी के जेब के दूसर',भोला बोला।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आद0 मनन कुमार जी सादर अभिवादन। उम्दा प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें।
बहुत बहुत आभार आदरणीय मेहता जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर जी,नमन।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,उम्दा कथा,बधाई स्वीकार करें ।
आभार भाई
बहुत खूब हार्दिक बधाई ।
बहुत बढ़िया कटाक्षपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। क्षेत्रीय भाषाई संवाद भी अधिकतर समझ में आ गए। शीर्षक भी बढ़िया रहा। चोर-चोर मौसेरे भाई और भ्रष्टाचार का चक्र/ अंतर्जाल।
आदरणीय कालीपद जी,आपका बहुत बहुत आभार।लिखने तो चला था हिंदी में ही,पर बीच में आकर भोजपुरी कुलाँचें मारने लगी थी।
आ मनन कुमार जी ,खड़ीबोली में लिखते तो पूरी बात समझ में आती ,ये बुन्देली ,अवधि , ब्रज कौन सी बोली है | सारांश तो समझ गए \ बहुत अच्छा लघु कथा | बधाई आपको |
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