जीवन
तुम हो
एक अबूझ पहेली,
न जाने फिर भी
क्यों लगता है
तुम्हे बूझ ही लूंगी.
पर जितना तुम्हें
हल करने की
कोशिश करती हूँ,
उतना ही तुम
उलझा देते हो.
थका देते हो.
पर मैंने भी ठाना है;
जितना तुम उलझाओगे ,
उतना तुम्हें
हल करने में;
मुझे आनन्द आएगा.
और
इसी तरह देखना;
एक दिन
तुम मेरे
हो जाओगे.
उपरोक्त कविता मौलिक व अप्रकाशित है (वीणा सेठी)
Comment
सकारात्मक भावों से युक्त इस रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें वीणा जी।
बहुत खूब हार्दिक बधाई,वीणाा जी ।
सुंदर कविता आदरणीया वीणा जी | हार्दिक बधाई |
हार्दिक बधाई आदरणीया वीणा जी. सुंदर अभिव्यक्ति के लिए.
मोहतरमा वीणा सेठी जी आदाब,सुंदर कविता है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'पर मैंने भी ठाना है'---"पर मैंने भी ठानी है"
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