ये क्या है जो मुझे चलाती?
कभी मंद कभी तेज भगाती।
क्या पाया क्या पाना चाहा,
हरदम मुझको याद दिलाती।
विधना ने क्रंदन दुःख लिखा,
यह प्रेरित करती हर्षाती।
कभी शिथिल होकर बैठा जो,
उत्प्रेरित कर मुझे जगाती।
जलते जीवन में भी हँसकर,
बढ़ते जाना मुझे सिखाती।
बीत समय जाएगा इक दिन,
यह धनात्मक सोच दिखाती।
कहकर क्या मैं इसे पुकारूँ?
जिजीविषा यूँ तो कहलाती।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय श्री Ravi Shukla जी, हार्दिक धन्यवाद एवं सादर नमस्कार। असल बात ये है कि विधाओं की समझ अभी तक मुझे नहीं हुई है, बस जो बातें मन में आतीं हैं उनको पद्य में लिखने की कोशिश करता हूँ। प्रयासरत हूँ कि थोड़ा समय निकाल कर छंद, विधा आदि के बारे में कुछ ज्ञान अर्जित कर लूँ।
अादरणीय किशोर जी आपकी रचना प्रस्तुति के लिये बधाई आपने इसे किस विधा में लिखा है यदि गजल है तो उसके अरकान पहले लिख देते आप तो इस पर और भी चर्चा हो जाती अभी इसका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं समझ आ रहा ।
Samar kabeer साहब, हार्दिक आभार! सादर नमस्कार।
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