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उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ
चाहत के अधूरे से फ़साने के लिए आ
.
चाहत भरी दस्तक भी सुनी थी कभी दिल ने
वीरानियों को फिर से बसाने के लिए आ
.
शब्दों की कमी तो मुझे हरदम ही रही है
खामोश ग़ज़ल कोई सुनाने के लिए आ
.
सागर ये गमों का कहीं तट तोड़ न जाए
ऐ राहते जां बांध बनाने के लिए आ
.
रौशन दरो दीवार है झिलमिल है सितारे
ऐ चाँद मेरे मुझको डुबाने के लिए आ
.
तहज़ीब की बातें करें जो है मेरे कातिल
जालिम मेरे अश्को को सजाने के लिए आ
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लहरें हुई चंचल ज़रा डगमग है सफीना
पतवार लिए पार लगाने के लिए आ
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हरदम हो बहारें नही ये मेरी तमन्ना
पतझर में भी तू फूल खिलाने के लिए आ
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय गिरिराज भंडारी जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आभार आपका। सादर
आदरनीय Nilesh Shevgaonkar जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आभार आपका। सादर
आदरनीया अलका जी , अच्छी गज़ल कहे है , हार्दिक बधाइयाँ ।
आ. अलका जी,
ग़ज़ल के लिये बधाई ....
तरही अथवा तज़मीन ग़ज़ल जब भी कहें तो कोशिश करें कि मूल ग़ज़ल के मिसरों के अंश न आने पाये... अथवा तरक़ीब अलग हो
ग़ज़ल के लिये पुन: बधाई
सादर
आदरनीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आभार आपका। सादर
आदरनीय Samar kabeer ji , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये धन्यवाद । मार्गदर्शन के लिए आभार आपका। सादर
आदरनीय Sushil Sarna ji , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आभार आपका। सादर
उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ
चाहत के अधूरे से फ़साने के लिए आ
.
चाहत भरी दस्तक भी सुनी थी कभी दिल ने
वीरानियों को फिर से बसाने के लिए आ
वह आदरणीय अलका ललित जी वाह बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे है आपने। इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
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