For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम वो आईने नहीं हैं जो बिखर जाते हैं (ग़ज़ल)

2122 1122 1122 22

संग जितने सहें उतना ही सँवर जाते हैं
हम वो आईने नहीं हैं जो बिखर जाते हैं

शाम ढलते ही निगाहों से गुज़र जाते हैं
सारे मंज़र जो कभी दिल में ठहर जाते हैं

देखता मैं भी उधर जा के, जिधर जाते हैं
रोज़-के-रोज़ कहाँ शम्स-ओ-क़मर जाते हैं

सहरा-ए-इश्क़ में हो जाता है दरिया का भरम
इसी ग़फ़लत में कई लोग उधर जाते हैं

हिज्र तो ज़रिया है जलने का चराग़-ए-उम्मीद
हम तो बस वस्ल का ही सोच के डर जाते हैं

जब पहुँचना ही नहीं ज़ीस्त की गाड़ी को कहीं
चलो ऐसा करें, गाड़ी से उतर जाते हैं

पारस-ए-इश्क़ का इक लम्स जिन्हें मिल जाए
हिज्र की आग में कुन्दन-सा निखर जाते हैं

रात तो काट ही लेते हैं मेरे साथ, मगर
सुब्ह फिर चाँद-सितारे ये किधर जाते हैं?

तैरते रहते हैं फिर सदियों तलक नाम उनके
दरिया-ए-इश्क़ में जो डूब के मर जाते हैं

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 23, 2017 at 4:37pm
वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही..बधाइयाँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 10:06am

आदरनीय जयनित भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाइयाँ । आ. नूर भाई और समर भाई की सलाह उचित हैं .. खयाल कीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 21, 2017 at 4:24pm

आ. जयनित भाई ग़ज़ल  पर तो सार्थक चर्चा हो गई है, मेरी तरफ से इस कोशिश के लिए बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 4:37pm

आ. जयनीत भाई 
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई ..
समर सर की बातों   का संज्ञान लें ..
.
हम वो आईने नहीं हैं जो बिखर जाते हैं.... यहाँ दो न साथ आने से शिकस्ते नारवा हो रहा है. साथ ही आईने के ने को गिराने से आईन बनता है जो सार्थक शब्द है अत: इसे गिराने से बचें. 
.
देखता मैं भी उधर जा के, जिधर जाते हैं... या 
देखता हूँ मैं उधर जा के, जिधर जाते हैं
,
बधाई 

Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:09pm

आदरणीय जयनित जी बढि़या गजल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 20, 2017 at 8:38am

आदरणीय जयनित भाई .....उम्दा ग़ज़ल के के शुक्रिया एवम बधाई .....

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 10:06pm
आदरणीय जयनित भाई,हारदिक बधाई स्वीकारें इस उम्दा गजल के लिए!
Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 9:32pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कई अशआर में अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त नहीं है,मतले का ऊला मिसरा :-
'संग जितने सहें उतना ही सँवर जाते हैं'
इस मिसरे में 'संग'के साथ 'सहें'शब्द मुनासिब नहीं है,संग खाये जाते हैं,लगते हैं,पड़ते हैं,ये मिसरा इस तरह ठीक हो सकता है :-
'संग जितने लगें उतना ही सँवर जाते हैं'(आप के विकल्प सुरक्षित हैं)

"पारस-ए-इश्क़ का इक लम्स जिन्हें मिल जाये'
इस मिसरे में 'पारस'शब्द में इज़ाफ़त नहीं लगाई जा सकती,ये हिन्दी भाषा का शब्द है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service