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बस चला जा रहा हूँ...

बस चला जा रहा हूँ ...

मैं
समय के हाथ पर
चलता हुआ
गहन और निस्पंद एकांत में
तुम्हारे संकेत को
हृदय की
गहन कंदराओं में
अपने अंतर् के
चक्षुओं में समेटे
बस चला जा रहा हूँ

मैं
समय के हाथ पर
मधुरतम क्षणों का आभास
स्वयं का
अबोले संकेत में
विलय का विशवास
अपने अंतर् के
चक्षुओं में समेटे
बस चला जा रहा हूँ

मैं
समय के हाथ पर
वाह्य जगत के
कल ,आज और कल के
भेद से अनभिज्ञ
अंतर चक्षुओं के कोरों पर
ठहरे हुए
तुम्हारे संकेत के
प्रतिबम्ब को
अपने अंतर् के
चक्षुओं में समेटे
बस चला जा रहा हूँ

समय के हाथ पर
दो छोर
सफलता और असफलता
सदा जीवित रहते हैं
मगर किस और
कोई नहीं जानता ?

मैं
जीत-हार
सुख-दुःख
आदि-अंत के भय से
वाह्य चक्षुओं को बंद कर
स्वयं को
इन मिथ्याओं से मुक्त करता
तुम्हारे श्वासों की गंध
तुम्हारी कुंतल लटों की
कपोलों से होती
वार्ता की ध्वनि को
लक्ष्य मान
अपनी आकांक्षाओं के अंकुर
अपने अंतर् के
चक्षुओं में समेटे
बस चला जा रहा हूँ

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 723

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Comment by Sushil Sarna on April 19, 2017 at 6:43pm

आदरणीय   vijay nikore जी रचना के भावों को अपनी सहमति देती प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से अलंकृत कर उसका मान बढ़ाने का हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on April 19, 2017 at 2:36pm

//समय के हाथ पर
दो छोर
सफलता और असफलता
सदा जीवित रहते हैं
मगर किस और
कोई नहीं जानता ?//

  बहुत कुछ सोचने को दे गई आपकी यह रचना।  समय क्या है.... है भी कि नहीं ?

  हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना को पोस्ट करने के लिए।

Comment by Sushil Sarna on April 18, 2017 at 4:13pm

आद0  KALPANA BHATT जी रचना में निहित भावों को अपने आत्मीय शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 17, 2017 at 7:59pm
आदरणीय सुशील सरना सर बेहद प्यारी रचना हुई हैं। हार्दिक बधाई ।
Comment by Sushil Sarna on April 17, 2017 at 4:34pm

आदरणीय   Mohammed Arif जी प्रस्तुति को अपने स्नेहिल शब्दों से आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Mohammed Arif on April 17, 2017 at 10:38am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सुंदर भावों का गुलदस्ता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on April 16, 2017 at 7:45pm

आदरणीय अनुराग जी रचना में निहित भावों को अपने आत्मीय शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 16, 2017 at 4:53pm

आदरणीय   सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'   जी प्रस्तुति को अपने स्नेहिल शब्दों से आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 16, 2017 at 4:52pm

आदरणीय  बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' जी रचना के भावों को अपनी सहमति देती प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से अलंकृत कर उसका मान बढ़ाने का हार्दिक आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:07am
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन, उम्दा सृजन हर बार की तरह,बधाइयाँ निवेदित है।

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