For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निकलना एक दिन है इस मकाँ से

बह्र 1222 1222 122

करो उम्मीद मत यूँ आसमाँ से ||
बिना मिहनत न कुछ मिलता वहाँ से||

उठाते साथ थे छप्पर सभी जब
हटा विश्वास क्यूँ फिर दरमियाँ से ||

कफ़न सर से कहाँ वो बाँधते हैं
मुहब्बत है जिन्हें अपनी ही जाँ से ||

जहन्नम से नही कम होती दुनिया
कोई भी गर नही जाता जहाँ से ||

कमी क्या रह गई इस ज़िन्दगी में?
दुआएँ मिल गई गर बाप माँ से ||

निकल कर अश्क वो कहते हैं अक्सर
जिसे कोई न कह पाये जुबाँ से ||

करो मत प्यार इतना 'नाथ' तन को
निकलना एक दिन है इस मकाँ से ||

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 880

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on March 31, 2017 at 9:09am

आदरणीय नीलेश जी,, आपने  ग़ज़ल के इस बहुत ज़रूरी पहलू पर धयान दिलाया  है,,मात्र बह्र के मुताबिक अल्फ़ाज़ फिट कर  देना ही काफी नहीं ,, गेयता का भी धयान रखना ज़रूरी है ,,यह कमी मुझे मेरी ग़ज़लों में नज़र आती है ,,इसे सुधारने की कोशिश करूँगा।  .. .. ..... ... धन्यवाद आपका 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2017 at 8:45am

बहुत ख़ूब आ. सुरेन्द्र नाथ जी ..
शब्दों की तरकीब को थोडा सा बदलने से गैयता बढ़ेगी ...जैसे ..
.
जहन्नम से न होती कम ये दुनिया
अगर जाता नही कोई यहाँ से ||.....
.
इसी प्रकार थोडा सा और चिन्तन कर के ग़ज़ल की ग़ज़लियत को निखारा जा सकता है.
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on March 30, 2017 at 2:27pm
आद0 वासुदेव अग्रवाल जी सादर अभिवादन, आपके गजल पर उपस्थिति और हौसला अफजाई के लिए दिल से आभार
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 30, 2017 at 11:31am
आ0 सुरेन्द्र नाथ जी बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर बधाई।
Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 10:45pm
आदरणीय गुरप्रीत भाई साहब सादर अभिवादन, गजल पसंद आयी, लिखना सार्थक हुआ, आभार आपका।
Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 10:44pm
आद0 मोहित मुक्त जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल पर आपकी हौसला अफजाई और सुखनवाजी के लिए दिल से आभार
Comment by Gurpreet Singh jammu on March 29, 2017 at 8:39pm
आदरणीय सुरेन्द्र नथ जी..क्या तारीफ़ करूँ इस गज़ल की...वाह वाह क्या ही खूबसूरत गज़ल हुई है..आनंद आ गया गज़ल पढ़कर ..बहुत अच्छे अशआर कहे हैं आपने.

करो उम्मीद मत यूँ आसमाँ से ||
बिना मिहनत न कुछ मिलता वहाँ से||

कफ़न सर से कहाँ वो बाँधते हैं
मुहब्बत है जिन्हें अपनी ही जाँ से |

निकल कर अश्क वो कहते हैं अक्सर
जिसे कोई न कह पाये जुबाँ से ||

करो मत प्यार इतना 'नाथ' तन को
निकलना एक दिन है इस मकाँ से |

यह अशआर तो बहुत ही पसंद आए..बहुत बधाई आपको इस शानदार गज़ल के लिए
Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 7:25pm
मोहतरम मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन, आपकी ग़ज़ल पर उपस्थिति और हौसला अफजाई के लिए सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 7:23pm
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम, आपकी गजल पर उपस्थिति और हौसला अफजाई के लिए हृदय की गहराईयो से आभार
Comment by Mohammed Arif on March 29, 2017 at 6:48pm
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद । ग़ज़ल के मक़ते में तन की नश्वरता की ओर अच्छा इशारा है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service