ग़ज़ल
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(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल )
क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |
दिखा कर गया इक झलक क्या कोई
मुसलसल ही हम आँख मलते रहे |
यही तो है गम प्यार के नाम पर
हमें ज़िंदगी भर वो छलते रहे |
मिली हार उलफत के आगे उन्हें
जो ज़हरे तअस्सुब उगलते रहे |
तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ
वफ़ा के दिए सारे जलते रहे |
असर होगा उनपर यही सोच कर
निगाहों से आँसू निकलते रहे |
था तस्दीक़ शाना किसी गैर का
जहाँ बैठ कर वो उछलते रहे |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |
वाह आदरणीय तस्दीक साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल बनी है। दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएं।
आदरणीय तसदीक साहब बढि़या गजल कही आपने दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।
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