For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओजोन की परत में अब छेद खल रहा है- आशुतोष

ओजोन  की परत में अब छेद खल रहा है

धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है

उन्नति के नाम पर हैं ये कारनामे अपने

तालाब पाट घर के हम बुन रहे हैं सपने

खेतों में चौगनी है माना फसल बढ़ी  पर

सब्जी अनाज फल में बिष खा रहे हैं अपने

नूतन प्रयोग अपना खुद हमको छल रहा है

धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है

ये गंदगी का ढेर जो चारो तरफ लगाया

इस गंदगी के ढेर को खुद हमने है बढ़ाया

हम खूब समझते है परिणाम जानते है

पर पोलिथीन में ही घर का सामान आया

खुद अपने हाथों मौत का षड्यंत्र चल रहा है

धरती झुलस रहे है जग सारा जल रहा है

बागों में तितलिया अब मिलती नहीं हैं ढूंढें

भंवरों की भ्रामरी भी अब न चमन में गूंजे

आता है अब भी यूं तो मौसम वो आम वाला

पर जाने हैं कहाँ गुम वो कोयलों की कूकें

प्यासी मही को बादल अब रोज छल रहा है

धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है

अब चील , गिद्ध मैना तीतर नजर न आते

फैला के पंख अपने न मोर नाच पाते

अब शेर चीते भालो शो पीस हो गए हैं

चमड़ी में भरा भूंसा महलो को हैं सजाते

हर जीव में जगत के आक्रोश पल रहा है

धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 5, 2017 at 8:29am
आदरणीय भाई जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 5, 2017 at 8:26am
आदरणीय गिरिराज भाईसाब रचना को आपका आशीर्वाद मिला यह मेरे लिए उत्साहवर्धक है सादर धन्यवाद और प्रणामके साथ
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 4, 2017 at 10:04pm
क्या खूब लिखा है...बहुत सुन्दर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:04pm

आदरणीय आशुतोष भाई , क्या बात है ..  पर्यावरण प्रदूषण पर बढिया गीत रचा है आपने , हार्दिक बधाइयाँ । आ. मिथिलेश भाई जी कोशिशों से गेयता और अच्छी हो गयी है , बधाइयाँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2017 at 2:39pm

आदरणीय महेंद्र जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2017 at 2:37pm

आदरणीय गोपाल सर रचना पर आपकी उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन करती प्रतिक्रिया के ह्रदय से आभारी हूँ सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2017 at 2:35pm

आदरणीय समर सर ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2017 at 11:18am

आदरणीय मिथिलेश जी नव बर्ष पर आपकी शानदार रचना को पढना उस गीत को पढ़कर जिन्दगी में पहली बार गीत लिखने का खुद प्रयास करना  ..प्रतिक्रिया न मिलने से निराश होना यह सोच कर की कही भयंकर भूल तो नहीं हुयी ..फिर आदरणीय समर सर आदरणीय गोपाल सर भाई महेंद्र जी की प्रतिक्रियाओं से मिला धाडस और अंत में आपकी बिस्तृत प्रतिक्रिया से गीत को समझने में बहत मदद मिली /मात्राओं को गिनने के सम्बन्ध में मेरी भ्रान्ति को नयी दिशा मिली./ नव बर्ष पर मेरे लिए ये किसी तुह्फे से कम नहीं है / आदरणीय मैंने ऐसी कुछ और रचनाये लिखी हैं उनकी बिधा के सम्बन्ध में प्रस्तुति के समय आपसे मार्गदर्शन मिलेगा /आपके मार्गदर्शन और प्रतिक्रिया  पर सादर धन्यवाद के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 12:36am

आदरणीय आशुतोष जी, आपका यह गीत एक बह्र जिसका वज्न 221-2122-- 221-2122 है, पर आधारित लग रहा है. गीत का मुखड़ा और पहला अंतरा तो इस पर फिट बैठ रहा है बाकी अंतरों में भी इसी बह्र की झलक है. इस बह्र पर गीत को कसा जाए तो गीत कुछ यूं लगेगा-

ओजोन  की परत में अब छेद खल रहा है

                                     धरती झुलस रही है संसार जल रहा है

उन्नति के नाम पर हैं ये कारनामे अपने

तालाब पाट घर के हम बुन रहे हैं सपने

खेतों में चौगनी है माना फसल बढ़ी  पर

सब्जी अनाज फल में बिष खा रहे हैं अपने

                               नूतन प्रयोग अपना खुद आज छल रहा है

                                    धरती झुलस रही है संसार जल रहा है

ये ढेर गंदगी का चारो तरफ लगाया

इस ढेर को भी यारो खुद हमने है बढ़ाया

हम खूब हैं समझते, परिणाम जानते है

पर पोलिथीन में ही, सामान घर का आया

                                 फिर मौत का स्वयं की षड्यंत्र चल रहा है

                                      धरती झुलस रहे है संसार जल रहा है

बागों में तितलिया अब मिलती नहीं हैं ढूंढें

भंवरों की भ्रामरी भी अब न चमन में गूंजे

आता है अब भी यूं तो मौसम वो आम वाला

पर जाने हैं कहाँ गुम वो कोयलों की कूकें

                                प्यासी मही को बादल अब रोज छल रहा है

                                      धरती झुलस रही है संसार जल रहा है

अब चील, गिद्ध, मैना, तीतर नजर न आते

फैला के पंख अपने ना मोर नाच पाते

अब शेर, चीते, भालू शो पीस हो गए हैं

भर खाल में जो भूसा महलों को हैं सजाते

                                    हर जीव में जगत के आक्रोश पल रहा है

                                        धरती झुलस रही है संसार जल रहा है 

गीत में बह्र अनुसार मात्रा गिराने की छूट भी ली गई है. 

इस शानदार गीत पर हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 9:49pm
आदरणीय आशुतोष जी, इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। कुछ टंकण त्रुटियों सहित "भालो" को "भालू" कर लीजिएगा। शेष गुणीजनों को बात पर ध्यान दें। मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएँ। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है।  ग़ज़ल 2122 1212 22 .. इश्क क्या…"
37 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service