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ग़ज़ल (शबे विशाल की दुल्हन को इंतज़ार रही)

1212      1122     1212     112

अवाम में सभी जन हैं इताब पहने हुए

सहिष्णुता सभी की इजतिराब पहने हुए |

गरीब था अभी तक वह बुरा भला क्या कहें

घमंडी हो गया ताकत के  ख्याब पहने हुए |

मसलना नव कली को जिनकी थी नियत, देखो (२२-११२)

वे नेता निकले हैं माला गुलाब पहने हुए |

अवैध नीति को वैधिक बनाना है धंधा (२२-११२)

वे करते केसरिया कीमखाब पहने हुए |   

शब-ए -विशाल की दुल्हन को इंतज़ार रहा

शबे फिराक हुई इजतिराब पहने हुए |

शबे दराज़ तो बीती बिना पलक मिला कर

सनम नहीं कहीं भी तो सराब पहने हुए |

शब्दार्थ :

इताब –गुस्सा ; इजतिराब –बेचैनी

कीमखाब –वस्त्र ,कपड़ा ; सराब – मृग मरीचिका ,भ्रम

शबे विशाल – मिलन की रात: शबे फिराक – विरह की रात

शबे दराज़ –लम्बी रात

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Samar kabeer on November 2, 2016 at 5:41pm
"शब"शब्द में इज़ाफ़त है इसलिये उसे 'शब-ए-लिखिए या 'शबे'बात एक ही रहेगी वज़्न भी समान ही माना जाता है ।
'कीमख़ाब'मेरे ख़याल में सही नहीं'किमख़ाब'ही सही शब्द है ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 2, 2016 at 3:57pm

आदरणीय समर कबीर साहब आदाब . "विसाल" वर्तनी की ओर ध्यान नहीं गया था ,अब ठीक कर लूंगा |

फिर भी एक बात पूछना है --शब्-ए -विसाल का भार  २-१-१२१ और शबे विसाल  का १२-१२१  (छुट लेकर ) इजाफत नियम के मुताबिक ब का भार १ ही रहता है | तो क्या शबे  का भार जरुरत के मुताबिक़ ११ मान सकते है ?

शब्द कोष के अनुसार किमखाब,कीमखाब किमख्वाब का अर्थ एक ही  है | मैंनेपहले भी कीमखाब का प्रयोग किया था | सादर 

Comment by Samar kabeer on November 2, 2016 at 2:55pm
भाई,मैने ये अर्ज़ किया था कि 'शबे विशाल'नहीं"शबे विसाल"करें,इसमें कहाँ वज़्न बदल रहा है,'विशाल'सही शब्द नहीं है,सही शब्द है"विसाल"'शा'को "सा"करने से क्या वज़्न बदल जाता है ?
इसी तरह तरही मुशायरे में आपने एक या दो शैरों में'किमख़ाब'शब्द इस्तेमाल किया था जो सही था,फिर उसी शब्द को यहँ आपने'कीम ख़ाब' कर दिया,मेने तो आपको इशारे दिए हैं,उन्हें समझना तो आप ही को है न । किमख़ाब की मुनासिबत से आपको मिसरा बदलना होगा ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 2, 2016 at 11:20am

आदरणीय समीर कबीर साहब , आदाब , आपके सुझाव के आनुसार मैंने   //शबे विशाल // को //शब्- ए - विशाल // किया परन्तु  भार १२१२१ से २११ २१ हो गया | क्या आप २११ को १२१ मान रहे है ? अगर ऐसा है तो यही बात मैं आप से पहले भी पूछा था क्या यह सभी बहरों में कर सकते हैं या किसी ख़ास बहर , वे कौन से हैं ?

वे करते के/सरिया की/मखाब पह/ने हुए 

१ २  12/112२/1212/११२

कीमखाब =बहर में बैठ रहा है, किमख्वाब का मात्रा भार मैं बैठा नहीं पा रहा हूँ | कृपया मार्ग दर्शन करें 

सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 1, 2016 at 7:49pm

बहुत बहुत आभार आ ब्रिजेश कुमार जी 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 1, 2016 at 7:47pm

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहिब हौसला अफजाई  केलिए हार्दिक आभार \

Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 1, 2016 at 7:37pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब ! आपके मार्ग दर्शन में बहुत कुछ सिखने को   मिलता है| विस्तृत विश्लेषण के लिए हार्दिक आभार |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2016 at 6:46pm
खूबसूरत ग़ज़ल
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2016 at 6:25pm
समसामयिक विषयों पर बहुत बढ़िया पेशकश के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी। मोहतरम जनाब समर कबीर साहब की टिप्पणी से जानकारी बढ़ी, सादर हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Samar kabeer on November 1, 2016 at 5:34pm
जनाब कालीपद प्रसाद मंडल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'ताक़त की ख़्वाब' को "ताक़त के ख़्वाब" कर लें,"ख़्वाब"पुल्लिंग है ।
चौथे शैर में 'कीमख़्वाब'को "किमख़्वाब"कर लें ।
पांचवें शैर के ऊला मिसरे में 'शब-ए-विशाल'को "शब-ए-विसाल"और 'इन्तिज़ार रही'को"इन्तिज़ार रहा"कर लें,इन्तिज़ार पुल्लिंग है ।

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