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अँधेरे को चीर कर ज्वाला

चमक रही है दीप-माला

नज़र उठाके दखो झोपडी, महल के पीछे वाली

कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |

 

महंगाई डायन का धंधा काला

महंगा है दाल चावल औ हाला

घर में न चावल दाल है, न है घर वाली

कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |

 

महल में जले दीपक सारे

आसमान में है चमकते सितारे

महल में है उजाला, पर बाहर रात काली

कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |

 

फोड़े पटाखें जलाए दीये,

रहिसों के घर पकवान पकेंगे

गरीब के नसीब में कहाँ, खाली सदा उनकी झोली

कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2016 at 3:09pm

रहिसो नहीं आदरणीय रईसों , सादर . 

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