अँधेरे को चीर कर ज्वाला
चमक रही है दीप-माला
नज़र उठाके दखो झोपडी, महल के पीछे वाली
कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |
महंगाई डायन का धंधा काला
महंगा है दाल चावल औ हाला
घर में न चावल दाल है, न है घर वाली
कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |
महल में जले दीपक सारे
आसमान में है चमकते सितारे
महल में है उजाला, पर बाहर रात काली
कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |
फोड़े पटाखें जलाए दीये,
रहिसों के घर पकवान पकेंगे
गरीब के नसीब में कहाँ, खाली सदा उनकी झोली
कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
रहिसो नहीं आदरणीय रईसों , सादर .
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