For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Kalipad Prasad Mandal's Blog (54)

एक व्यंग रचना

कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल

बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |

आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का

टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |

 

एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में

नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |

सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का

उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |

आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on February 3, 2018 at 4:34pm — 2 Comments

लावणी छंद पर आधारित रचना =कालीपद 'प्रसाद'

मुसीबतों से लोकतंत्र को, जल्दी उबारना होगा

निर्धनों के हक़ में देश में कानून बदलना होगा |

निर्धन नहीं खड़ा हो सकता, पार्षद के भी चुनाव में

लाखों रुपये चाहिए उसे, चुनाव दंगल लड़ने में |

गणतंत्र अभी धनतंत्र हुआ, धनाढ्य चुनाव लड़ते हैं

गरीब कैसे लडेगा भला, पास न लाखो रूपये हैं’ |

धनबल बाहुबल की प्रचुरता, ताकत बड़ी अमीरों की

निर्धनता ही कमजोरी है, इस देश के गरीबो की |

भ्रष्टाचार और महँगाई, साथ यौन शोषण भी…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on January 28, 2018 at 10:17am — 5 Comments

ग़ज़ल-ये'  माया मोह का  चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|

काफिया :अन ; रदीफ़ : को

बहर : १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को

ये'  माया मोह का  चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|

किए  आईना’दारी मुग्ध  नारी जाति  को जग में

नयन मुख के  सजावट  बीच भूले  नारी’ कंगन को |

सुधा रस  फूल का पीने दो’ अलि  को पर कली को छोड़

कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|

बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी

न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on January 23, 2018 at 11:02am — 8 Comments

ग़ज़ल -महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं=कालीपद 'प्रसद'

काफिया : अम   रदीफ़: देखते हैं

बह्र : १२२  १२२  १२२  १२२

महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं

अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |

बहुत है दुखी कौम  गम देखते हैं

सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |

अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर  

मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |

दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या

वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |

किया देश हित काम जनता ही’ देखे

विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on January 17, 2018 at 11:30am — 2 Comments

ग़ज़ल -हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आद ; रदीफ़ :नहीं

बहर : २१२२  २१२२  २१२२  २२(११२)

हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं

बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |

“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा

है नई बोतल, सुरा में तो ईजाद नहीं |

भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने

द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |

देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी

किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |

लूटने का मामला…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on January 13, 2018 at 9:41am — 8 Comments

ग़ज़ल -चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में- कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आब ; रदीफ़ : में

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२

चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में

मुहँ बंद किन्तु भौंहे’ चड़ी हैं इताब में |

इंसान जो अज़ीम है’ बेदाग़ है यहाँ  

है आग किन्तु दाग नहीं आफताब में |

जाना नहीं है को’ई भी सच और झूठ को

इंसान जी रहे हैं यहाँ’ पर सराब में  |

इंसां में’ कर्म दोष है’, जीवात्मा’ में नहीं

है दाग चाँद में, नहीं’ वो ज्योति ताब में |

मदहोश जिस्म और नशीले…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on January 8, 2018 at 10:00am — 8 Comments

ग़ज़ल-सुन्दर खुशबू फूलों से ही मोहक मंजर लगता है-कालीपद 'प्रसाद'

नव वर्ष २०१८ के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित |

*************************************************

काफिया : अर ;रदीफ़ : लगता है

बहर: २२  २२  २२  २२  २२  २२  २२  २

सुन्दर फूलों की खुशबू मोहक मंजर लगता है |

फागुन आने के पहले ही, होली अवसर लगता है |

मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा

श्रृंगार से धरती दुल्हन लगती, गुल जेवर लगता है |

काले बादल बरसे गांवों में, मन का आपा खोकर

जहां भी देखो नीर नीर…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on January 2, 2018 at 9:00am — 8 Comments

ग़ज़ल -जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त -कालीपद 'प्रसाद'

काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त

२१२२   २१२२  २१२२  २१२ (+१)

जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त

हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |

एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती

किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |

दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं

वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |

कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती

ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 28, 2017 at 4:49pm — 2 Comments

ग़ज़ल -मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था-कालीपद 'प्रसाद'

2122  2122  212

मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था

दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |

दोष मढने के लिए था चाहिए

देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |

दोष संस्थापन कभी होता था नहीं

पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |

किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं

शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |

जान कर भी दोस्त सब रहते तने

मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था  |

अब तलक थे मानसिक सब कष्ट…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 24, 2017 at 2:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल -मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आत ; रदीफ़ : चाहिए

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२

 

मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए

कैसे बने हबीब मुलाक़ात चाहिए |

 

वादा निभाने’ में तुझे’ दिन रात चाहिए

हर क्षेत्र में विकास का’ इस्बात चाहिए |

 

आतंकबाद पल रहा’ है सीमा’ पार में

जासूसी’ करने’ एक अविख्यात चाहिए |

 

तू लाख कर प्रयास नही पा सकेगा’ रब

भगवान को विशेष मनाजात चाहिए…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 22, 2017 at 9:00am — 5 Comments

ग़ज़ल -सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं - कालीपद 'प्रसाद'

सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं 

यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं 

प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ

हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |

सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता

दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |

चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी

पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |

लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह

हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 18, 2017 at 8:30am — 14 Comments

ग़ज़ल -राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे-कालीपद 'प्रसाद'- संशोधित

काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे

बह्र :२१२२ २१२२  २१२२  २१२

राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे

यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |

'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ

फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|

'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में

ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||

अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था

जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त  हैरानी मुझे…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:30am — 4 Comments

ग़ज़ल -दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही अहबाब था-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया :आब ; रदीफ़ ;था

बह्र :२१२२  २१२२  २१२२  २१२

दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था

जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |

मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था

चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |

स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को

सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |

आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी

आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |

शब कटी बेदारी’…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 8, 2017 at 3:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल-प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आद ,रदीफ़ : नहीं

बहर : १२१२  ११२२  १२१२  ११२ (२२)

अभी किसी को’ भी’ नेता पे’ एतिकाद नहीं

प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |

किये तमाम मनोहर करार, सब गए भूल

चुनाव बाद, वचन रहनुमा को’ याद नहीं |

गरीब सब हुए’ मुहताज़, रहनुमा लखपति

कहा जनाब ने’ सिद्धांत अर्थवाद नहीं |

जिहाद हो या’ को’ई और, कत्ल धर्म के’ नाम

मतान्ध लोग समझते हैं’, उग्रवाद नहीं  |

कृषक सभी है’ दुखी दीन, गाँव…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 6, 2017 at 10:21am — 9 Comments

ग़ज़ल -मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं - कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२  (२१२१)

तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं

मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |

वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर

इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |

वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी

जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |

जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में

हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 3, 2017 at 4:39pm — 8 Comments

ग़ज़ल -क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाना दिल में’ है--कालीपद 'प्रसाद'

काफिया  ;इल ; रदीफ़ : में है

बह्र : २१२२  २१२२  २१२२  २१२

क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाने दिल में’ है

किन्तु का ज़िक्र दिल से दूगुना महफ़िल में’ है |१|

जानती है वह कि गलती की सही व्याख्या कहाँ

पंख बिन भरती उड़ाने, भूल इस गाफिल में’ है  |२|

राम रब कृष्ण और गुरु अल्लाह सब तो एक हैं

बोलकर नेता खुदा पर, पड़ गए मुश्किल में है |३|

गर सफलता चाहिए तुमको करो दृढ मन अभी

जज़्बा’ विद्यार्थी में’ हो वैसा…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 26, 2017 at 9:00am — 7 Comments

ग़ज़ल -राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आन ,रदीफ़ : है

बह्र : २२१  २१२१  १२२१  २१२

राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है

सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |

अदभूत जीव जानवरों का जहान है

नीचे धरा, समीर परे आसमान है |

संसार में तमाम चलन है ते’री वजह

हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |

जो भी जमा किये यहाँ’ रह…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 20, 2017 at 3:37pm — 9 Comments

ग़ज़ल-चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है- कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है

बहर : १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है

इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |

सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी   

अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |

खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ

चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |

लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और

सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 7:30am — 8 Comments

ग़ज़ल -ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बगैर-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया :अर ; रदीफ़ : कहे बगैर 

बह्र :२२१  २१२१  १२२१  २१२ (१)

ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बग़ैर 

आता सदा वही बुरा’ अवसर कहे बग़ैर |

बलमा नहीं गया कभी’ बाहर कहे बग़ैर

आता कभी नहीं यहाँ’, जाकर कहे बग़ैर |

है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक

दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर | 

दुर्बल के  क़र्ज़  मुक्ति  सभी होनी  चाहिए

क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |

सब धर्म पालते मे’रे’ साजन, मगर…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 9, 2017 at 9:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल-रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |

काफिया : आला . रदीफ़ : है

बह्र : २१२  १२२२  २१२  १२२२

हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है

रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |

छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है

ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||

आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर

धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |

सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता

अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |

राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब

वो…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 6, 2017 at 7:30am — 2 Comments

Monthly Archives

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Nov 29

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service