कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल
बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |
आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का
टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |
एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में
नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |
सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का
उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |
आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on February 3, 2018 at 4:34pm — 2 Comments
मुसीबतों से लोकतंत्र को, जल्दी उबारना होगा
निर्धनों के हक़ में देश में कानून बदलना होगा |
निर्धन नहीं खड़ा हो सकता, पार्षद के भी चुनाव में
लाखों रुपये चाहिए उसे, चुनाव दंगल लड़ने में |
गणतंत्र अभी धनतंत्र हुआ, धनाढ्य चुनाव लड़ते हैं
गरीब कैसे लडेगा भला, पास न लाखो रूपये हैं’ |
धनबल बाहुबल की प्रचुरता, ताकत बड़ी अमीरों की
निर्धनता ही कमजोरी है, इस देश के गरीबो की |
भ्रष्टाचार और महँगाई, साथ यौन शोषण भी…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 28, 2018 at 10:17am — 5 Comments
काफिया :अन ; रदीफ़ : को
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को
ये' माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|
किए आईना’दारी मुग्ध नारी जाति को जग में
नयन मुख के सजावट बीच भूले नारी’ कंगन को |
सुधा रस फूल का पीने दो’ अलि को पर कली को छोड़
कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|
बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी
न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 23, 2018 at 11:02am — 8 Comments
काफिया : अम रदीफ़: देखते हैं
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं
अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |
बहुत है दुखी कौम गम देखते हैं
सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |
अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर
मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |
दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या
वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |
किया देश हित काम जनता ही’ देखे
विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 17, 2018 at 11:30am — 2 Comments
काफिया : आद ; रदीफ़ :नहीं
बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २२(११२)
हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं
बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |
“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा
है नई बोतल, सुरा में तो’ ईजाद नहीं |
भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने
द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |
देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी
किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |
लूटने का मामला…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 13, 2018 at 9:41am — 8 Comments
काफिया : आब ; रदीफ़ : में
बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२
चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में
मुहँ बंद किन्तु भौंहे’ चड़ी हैं इताब में |
इंसान जो अज़ीम है’ बेदाग़ है यहाँ
है आग किन्तु दाग नहीं आफताब में |
जाना नहीं है को’ई भी सच और झूठ को
इंसान जी रहे हैं यहाँ’ पर सराब में |
इंसां में’ कर्म दोष है’, जीवात्मा’ में नहीं
है दाग चाँद में, नहीं’ वो ज्योति ताब में |
मदहोश जिस्म और नशीले…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 8, 2018 at 10:00am — 8 Comments
नव वर्ष २०१८ के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित |
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काफिया : अर ;रदीफ़ : लगता है
बहर: २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
सुन्दर फूलों की खुशबू मोहक मंजर लगता है |
फागुन आने के पहले ही, होली अवसर लगता है |
मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा
श्रृंगार से धरती दुल्हन लगती, गुल जेवर लगता है |
काले बादल बरसे गांवों में, मन का आपा खोकर
जहां भी देखो नीर नीर…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 2, 2018 at 9:00am — 8 Comments
काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त
२१२२ २१२२ २१२२ २१२ (+१)
जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त
हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |
एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती
किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |
दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं
वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |
कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती
ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 28, 2017 at 4:49pm — 2 Comments
2122 2122 212
मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था
दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |
दोष मढने के लिए था चाहिए
देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |
दोष संस्थापन कभी होता था नहीं
पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |
किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं
शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |
जान कर भी दोस्त सब रहते तने
मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था |
अब तलक थे मानसिक सब कष्ट…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 24, 2017 at 2:30pm — 4 Comments
काफिया : आत ; रदीफ़ : चाहिए
बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२
मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए
कैसे बने हबीब मुलाक़ात चाहिए |
वादा निभाने’ में तुझे’ दिन रात चाहिए
हर क्षेत्र में विकास का’ इस्बात चाहिए |
आतंकबाद पल रहा’ है सीमा’ पार में
जासूसी’ करने’ एक अविख्यात चाहिए |
तू लाख कर प्रयास नही पा सकेगा’ रब
भगवान को विशेष मनाजात चाहिए…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 22, 2017 at 9:00am — 5 Comments
सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं
यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं
प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ
हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |
सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता
दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |
चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी
पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |
लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह
हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 18, 2017 at 8:30am — 14 Comments
काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे
बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२
राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे
यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |
'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ
फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|
'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में
ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||
अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था
जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त हैरानी मुझे…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:30am — 4 Comments
काफिया :आब ; रदीफ़ ;था
बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२
दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था
जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |
मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था
चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |
स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को
सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |
आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी
आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |
शब कटी बेदारी’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 8, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
काफिया : आद ,रदीफ़ : नहीं
बहर : १२१२ ११२२ १२१२ ११२ (२२)
अभी किसी को’ भी’ नेता पे’ एतिकाद नहीं
प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |
किये तमाम मनोहर करार, सब गए भूल
चुनाव बाद, वचन रहनुमा को’ याद नहीं |
गरीब सब हुए’ मुहताज़, रहनुमा लखपति
कहा जनाब ने’ सिद्धांत अर्थवाद नहीं |
जिहाद हो या’ को’ई और, कत्ल धर्म के’ नाम
मतान्ध लोग समझते हैं’, उग्रवाद नहीं |
कृषक सभी है’ दुखी दीन, गाँव…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 6, 2017 at 10:21am — 9 Comments
काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं
बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२ (२१२१)
तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं
मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |
वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर
इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |
वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी
जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |
जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में
हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 3, 2017 at 4:39pm — 8 Comments
काफिया ;इल ; रदीफ़ : में है
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाने दिल में’ है
किन्तु का ज़िक्र दिल से दूगुना महफ़िल में’ है |१|
जानती है वह कि गलती की सही व्याख्या कहाँ
पंख बिन भरती उड़ाने, भूल इस गाफिल में’ है |२|
राम रब कृष्ण और गुरु अल्लाह सब तो एक हैं
बोलकर नेता खुदा पर, पड़ गए मुश्किल में है |३|
गर सफलता चाहिए तुमको करो दृढ मन अभी
जज़्बा’ विद्यार्थी में’ हो वैसा…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 26, 2017 at 9:00am — 7 Comments
काफिया : आन ,रदीफ़ : है
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है
सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |
अदभूत जीव जानवरों का जहान है
नीचे धरा, समीर परे आसमान है |
संसार में तमाम चलन है ते’री वजह
हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |
जो भी जमा किये यहाँ’ रह…
Added by Kalipad Prasad Mandal on November 20, 2017 at 3:37pm — 9 Comments
काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है
इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |
सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी
अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |
खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ
चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |
लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और
सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 7:30am — 8 Comments
काफिया :अर ; रदीफ़ : कहे बगैर
बह्र :२२१ २१२१ १२२१ २१२ (१)
ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बग़ैर
आता सदा वही बुरा’ अवसर कहे बग़ैर |
बलमा नहीं गया कभी’ बाहर कहे बग़ैर
आता कभी नहीं यहाँ’, जाकर कहे बग़ैर |
है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक
दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर |
दुर्बल के क़र्ज़ मुक्ति सभी होनी चाहिए
क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |
सब धर्म पालते मे’रे’ साजन, मगर…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 9, 2017 at 9:30pm — 10 Comments
काफिया : आला . रदीफ़ : है
बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२
हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है
रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |
छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है
ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||
आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर
धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |
सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता
अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |
राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब
वो…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 6, 2017 at 7:30am — 2 Comments
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