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ख़्वाबों की लहद ....

ख़्वाबों की लहद ....

ये आंखें
न जाने कितने चेहरे
हर पल जीती हैं
हर चेहरे के
हज़ारों ग़म पीती हैं
मुस्कुराती हैं तो
ख़बर नहीं होती
मगर बरस कर
ये सफर को अंजाम
दे जाती हैं
ज़हन की मिट्टी को
किसी दर्द का
पैग़ाम दे जाती हैं

मेरी तन्हाईयों को
नापते -नापते
न जाने कितने आफ़ताब लौट गए
मेरी तारीकियों में
हर शरर ने
अपना वज़ूद खोया है
हर लम्हा
किसी न किसी लम्हे के लिए
वक्त की चौखट से लिपट
बेआवाज़
बहुत रोया है

ख़्वाबों का
कोई साहिल नहीं होता
शब् भर के
मेहमान होते हैं
सहर के कहर से
अंजान होते हैं
सांस देते हैं
अरमानों को
वक्त के कश्कोल में
ख्वाहिशों के
महकते लोबान होते हैं

मेरी आँखों के
घरौंदों में
हर चेहरे ने
इश्क जताया है
ज़िस्म को नापा है
फिर संग सा
रुख़ अपनाया है
शब् के तमाम साये
हर पल
मेरे ज़िस्म पर
रेंगते महसूस होते हैं

औरत हूँ
कच्ची मिट्टी के गारे सी
हर रूप में ढल जाती हूँ
मुहब्बत की दुनियां में
इश्क की देवी कहलाती हूँ
जिस सागर की
तिश्नगी मिटाती हूँ
उसी के हाथों
लुट जाती हूँ
दुनियावी मुस्कराहट के लिए
कई चेहरे लगाती हूँ
ख़ुद जागती हूँ
मगर
अंधेरों की चादर में
नुचे हुए ज़िस्म को सुलाती हूँ
अंदर की औरत को
थपकियों से सहलाती हूँ
अश्कों के तूफ़ान को
पलकों की रेत पे
सुखाती हूँ
थक जाती हूँ तो
ग्रामोफोन की सुई को
रिकार्ड पर लगा कर
ये गाना उसे सुनाती हूँ
औरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाह मसला कुचला
जब जी चाह दुत्कार दिया

उफ़ ! कितनी गहराई है
इन नमनाक से लफ़्ज़ों में
बस यही सोचते सोचते
गहरी होती रात में
ख़्वाबों की लहद में
रूहानी औरत के साथ
ज़िस्मानी औरत को भी
सुला देती हूँ


सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 2:02pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण' जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 2:01pm

आदरणीय   Ashok Kumar Raktale जी सदा की तरह आपने अपने हृदयग्राही शब्दों से प्रस्तुति के भावों को जो आत्मीय मान दिया है उसके लिए बन्दा आपका शुक्रगुज़ार है।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 4, 2016 at 1:49pm
आदरणीय श्री सुशील सरना नारी जीवन की यथार्थ प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on October 3, 2016 at 8:50pm

वाह ! नारी जीवन को पैनी नजर से देखता सुंदर अतुकांत रचा है आदरणीय सुशील सरना साहब. सादर.

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2016 at 1:41pm

आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब प्रस्तुति के भावों को इतनी गहनता से महसूस कर आपने अपने प्रशंसात्मक शब्दों से उसे जो ऊंचाई प्रदान की है उसके लिए बन्दा आपका शुक्रगुजार है। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 2, 2016 at 11:37am

उफ़ ! कितनी गहराई है
इन नमनाक से लफ़्ज़ों में
बस यही सोचते सोचते
गहरी होती रात में
ख़्वाबों की लहद में
रूहानी औरत के साथ
ज़िस्मानी औरत को भी
सुला देती हूँ------------------------बहुत बहुत बधाई . औरत के दर्द को बहुत गहराई से महसूस किया आपने  आ० सरना जी

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 8:56pm

आदरणीय  Tasdiq Ahmed Khan जी सदा की तरह आपने अपने हृदयग्राही शब्दों से प्रस्तुति के भावों को जो आत्मीय मान दिया है उसके लिए बन्दा आपका शुक्रगुज़ार है।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 1, 2016 at 7:38pm

मोहतरम सुशील सरना साहिब , बहुत ही गहराई लिए हुए और सोचने पर मजबूर करती सुन्दर कविता के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 2:26pm

आदरणीय  शिज्जु "शकूर" जी आपके शीरीं अलफ़ाज़ रचना के भावों को जीवंत कर देते हैं। इस स्नेह का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 2:26pm

आदरणीय  Samar kabeer जी सदा की तरह आपने अपने हृदयग्राही शब्दों से प्रस्तुति के भावों को जो आत्मीय मान दिया है उसके लिए बन्दा आपका शुक्रगुज़ार है।

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