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खामोश मौसम ....

अपनी ही आवाज़ों के साथ
बैसाखियाँ
आग में जलने लगी

समय
और सुईयों की रफ़्तार
अपनी बेख़ौफ़ चाल के साथ
ज़िन्दा होने का
सबूत देती रही

जज़्बात
हड्डियों की बैसाखियों पर
खामोशियों के लिबास पहने
खुद को ढोते रहे

एक बैसाखी दिल की
किसी शरर की उम्मीद में
तारीकियों से लिपटी
पल पल जलती हुई
ज़ख्मों की तलाशी लेती रही

जलते हुए ख़्वाब
शायद अपनी बैसाखियाँ
भूल गए

और तुम भी तो
अपनी बैसाखी भूल गए
रूहानी ज़िस्म को
वादे की
कैसी बैसाखी दी
कि हर बैसाखी
इस बैसाखी को देखने लगी
चराग़ के मन में
सबा से लड़ती
मेरे दिल की बैसाखी
जलती रही

मैं नहीं जानती
सच
झूठ
वादे
और
कसमों की जलती बैसाखियाँ
क्यों जली
मगर
मेरे ख़्वाबों के जज़ीरों में
उम्मीदों की

जलती बैसाखियों पर
धधकते रहे
जाने कितने
खामोश मौसम

मेरे

फ़ना होने के बाद भी 

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 10:26pm

आदरणीय Tasdiq Ahmed Khanजी  रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 10:25pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से प्रोत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 4, 2016 at 9:32pm

मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , जितने अच्छे अलफ़ाज़ उतनी ही खूबसूरत पेश कश , दिल की गहराइयों को छूती एक और सुन्दर कविता ,के लिए दिल से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 4, 2016 at 3:17pm
आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर एवं भावात्मक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 2:04pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी  रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 3, 2016 at 5:50pm

आ. सुशील सरना जी अच्छी रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2016 at 2:56pm

आदरणीय Kalipad Prasad Mandal     जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से प्रोत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2016 at 2:53pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी  रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2016 at 2:52pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने सदा मेरे सृजन को प्रोत्साहित किया है। आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 4:51pm

मैं नहीं जानती 
सच 
झूठ 
वादे 
और 
कसमों की जलती बैसाखियाँ 
क्यों जली 
मगर 
मेरे ख़्वाबों के जज़ीरों में 
उम्मीदों की

जलती बैसाखियों पर 
धधकते रहे 
जाने कितने 
खामोश मौसम

मेरे

फ़ना होने के बाद भी 

गहन भाव, एक अनुत्तरित प्रश्न को प्रस्तुत करती बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ  स्वीकार करें आ सुशील सरना जी |

कृपया ध्यान दे...

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