शिद्दत की प्यास-----
‘बेटा ----‘
वृद्ध-बीमार पिता ने पुकारा
कोई उत्तर नहीं आया
‘बेटा श्रवण -----‘
पिता ने फिर पुकारा
फिर कोई उत्तर नहीं आया
‘बहू ------ ‘
वृद्ध ने विकल्प तलाशना चाहा
कोई हलचल नहीं हुयी
वृद्ध ने एक और प्रयास करना चाहा
पर खुश्क गले से
नहीं निकल पायी आवाज
उसने कोशिश की स्वयं उठने की
बूढ़े पांवों में नहीं थी
शरीर का बोझ उठाने की ताकत
वह लड़खड़ा कर गिरा
कोई बर्तन टूटा, फ़ैल गया पानी
अचानक दरवाजा खुला
बहू ने प्रवेश किया
‘क्या बाबू जी---?रायता फैला दिया
तंग आ गयी मैं सफाई करते-करते
पर नहीं आते आप
अपनी हरकतों से बाज ?’
तभी वहां प्रकट हुआ
श्रवण कुमार , आँखें मलता हुआ
‘क्या हुआ डार्लिंग ?’
‘बाबू जी ने फिर जग तोड़ दिया
और क्या ?
‘ओह डैड ! कितनी बार कहा
आवाज दे दिया करो
जगा लिया करो पर ---‘
अचानक बहू ने घबरा कर कहा -
‘अरे ---- यह बुड्ढा उठता क्यों नहीं ?’
Comment
बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई । सादर , |
आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब एक यथार्थ को आपने बड़ी ही मार्मिकता से प्रस्तुत किया है। ज़हन में उभरे चन्द शब्द इसी सन्दर्भ में :
उम्र की
उम्रदराज़ चौखट को
ये दर्द भी सहने पड़ते हैं
न ज़िन्दगी साथ देती है
न मौत हाथ देती है ,
एक बर्तन से टूट जाते हैं
दर्द बिखरे
खुद ही उठाने पड़ते हैं
मजबूर हैं
कांधों के लिए
वरना
शमशानों सी इस दुनिया में
अपने ज़िस्म
चिताओं पे
खुद ही जलाने पड़ते हैं
बहरहाल इस मार्मिक प्रस्तुति के लिए दिल बधाई स्वीकार करें सर।
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