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ग़ज़ल-तुम्हारा प्यार चंदन-रामबली गुप्ता

वह्र=1222 1222 122

तुम्हारा प्यार चंदन हो गया है।
सुवासित आज तन-मन हो गया है।।

जो' सूना बाग दिल का था सदा से।
तेरे आने से' मधुबन हो गया है।।

ये' मन-मन्दिर तू' मूरत ईश जैसी।
ये' मेरा प्यार पूजन हो गया है।।

जलाया प्यार का जो दीप तुमने।
अँधेरा दिल ये' रौशन हो गया है।।

न टूटेगा जो' मर कर भी जहां में।
मेरा तुझसे वो' बन्धन हो गया है।।

धनुष-भौहें ये' चंचल नैन तेरे।
छुरी ये हाय! अंजन हो गया है।।

अधर तेरे सुधा नव-पुष्प-यौवन।
कमर का लोच दुश्मन हो गया है।।

पिया जो प्यार का अमृत अधर से।
प्रफुल्लित ये भ्रमर-मन हो गया है।।

तेरी पायल बजी दिल में झनन-झन।
मयूरा मन का' चेतन हो गया है।।

बसाया यूं उसे दिल में 'बली' जी।
मेरे सीने की' धड़कन हो गया है।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by रामबली गुप्ता on September 9, 2016 at 5:30am
आद0 गिरिराज भाई जी ग़ज़ल पसन्द करने के लिए आपको बहुत बहुत आभार। सादर

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2016 at 4:51pm

आदरनीय रामबली भाई , बेहतरीन गज़ल कह्ही है , दिल से बधाइयाँ आपको हरेक शे र के लिये ।

Comment by रामबली गुप्ता on September 5, 2016 at 8:37pm
आद० समर कबीर साहब ग़ज़ल पर आपकी सराहना एवं प्रोत्साहन से अभिभूत हूँ। हृदय से आभार आपको। आपके सुझाव के अनुरूप गिरह वाले शेर में संशोधन कर दिया है। पुनः आभार।सादर
Comment by Samar kabeer on September 5, 2016 at 11:41am
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।गिरह बन्द मक़्ते का मिसरा अगर यूँ कर लें तो मुनासिब होगा:-

"बसाया यूँ उसे दिल में'बली'जी"

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