सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार।
लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।।
मिले नहीं आधार, सत्य के बिन उद्घाटन।
शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, मूल्य पर भी हो चिंतन।।
बिना ज्ञान-विज्ञान, न वर्णन है प्रासंगिक।
विषय सृजन की रहें, विषमताएँ सामाजिक।।1।।
सुनिए सबकी बात पर, रहे सहज अभिव्यक्ति।
तथ्यपरक हो दृष्टि भी, करें न अंधी भक्ति।।
करें न अंधी भक्ति, इसी में है अपना हित।
निर्णय का अधिकार, स्वयं सँग रखें सुरक्षित।।
कुछ करने के पूर्व, उचित को हिय…
Added by रामबली गुप्ता on November 4, 2024 at 8:00pm — 9 Comments
आज खुशी से झूमूँ सखि री पत्र पिया का आया है
भाव भरे अक्षर-अक्षर ने ये तन-मन हर्षाया है
लिखते, प्रिये! तुम्हीं से सब कुछ, सुख-दुख की सहभागी तुम
तुमने इस जीवन में खुशियों का सावन बरसाया है
रहता था निर्वासित सा मन जीवन के निर्जन वन में
पावन प्यार भरा गृह इसको तुमने ही लौटाया है
कहते- पीर भरा यह जीवन जो तपते मरुथल सा था
पाकर तेरा स्नेह सलिल अब हरा भरा हो आया है
नीरव हिय का रंगमहल था साज-बाज सब सूने थे
तेरी पायल…
Added by रामबली गुप्ता on February 11, 2023 at 9:30am — No Comments
ग़ज़ल
यह कैसा संसार है भइया
दीप तले अँधियार है भइया
जनता के हिस्से की रोटी
खा जाती सरकार है भइया
जाति धरम के बाद यहाँ क्या
जनमत का आधार है भइया
अधर अरुण कलियाँ धनु भौहें
अंजन हाय कटार है भइया
इस जग में कुछ निश्छल भी है
हाँ वह माँ का प्यार है भइया
आज जरूरत है दुर्गा की
कृष्ण नहीं दरकार है भइया
करता चल कुछ काम भले भी
जीना दिन दो चार है…
Added by रामबली गुप्ता on January 25, 2023 at 8:06am — 6 Comments
1222 1222 122
सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं
बताओ नाम तो उन पर्वतों के
हमारे हौसलों से जो बड़े हैं
नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो
सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं
जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं
ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं
ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों
यकीनन शूल शब्दों के गड़े…
Added by रामबली गुप्ता on July 6, 2020 at 11:37pm — 12 Comments
गीत
देखा जब से उनको हिय में हुई अजब सी हलचल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
उनके अरुण अधर ज्यों फूलों की हों कोमल कलियाँ।
जिनसे फूटें स्वर मधुरिम तो गूँजें मन की गलियाँ।।
केशों के झुरमुट में उनका मुखमंडल यों भाये।
घन के मध्य झरोखे में ज्यों इंदु मंद मुसकाये।।
दृग पराग के प्याले हों ज्यों करते हर पल छल-छल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
खिलता यौवन-पुष्प सुरभि यों चहुँ दिश बिखराता…
ContinueAdded by रामबली गुप्ता on April 26, 2020 at 11:03pm — 6 Comments
महाभुजंगप्रयात सवैया
कड़ी धूप या ठंड हो जानलेवा न थोड़ी दया ये किसी पे दिखाती।
कि लेती कभी सब्र का इम्तिहां और भूखा कभी रात को ये सुलाती।।
जरूरी यहाँ धर्म-कानून से पूर्व दो वक्त की रोटियाँ हैं बताती।
गरीबी न दे ऐ खुदा! जिंदगी में कि इंसान से ये न क्या क्या कराती?
शिल्प-लघु गुरु गुरु(यगण)×8
रचनाकार- रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on April 23, 2019 at 5:23pm — 5 Comments
सूत्र-सात यगण +गा; 122×7+2
पड़ी जान है मुश्किलों में करूँ क्या कि नैना मिले और ये हो गया।
गई नींद भी औ' लुटा चैन मेरा न जाने जिया ये कहां खो गया।।
जिया के बिना भी जिया जाय कैसे अरे! कौन काँटें यहां बो गया।
हुआ बावरा या नशा प्यार का है संभालो मुझे हाय! मैं तो गया।।
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on April 17, 2019 at 10:29am — 9 Comments
सूत्र-आठ यगण प्रति पद; 122x8
चुनो मार्ग सच्चा करो कर्म अच्छे जहां में तुम्हारा सदा नाम होगा।
करो यत्न श्रद्धा व निष्ठा भरे तो न पूरा भला कौन सा काम होगा।।
न निर्बाध है लक्ष्य की साधना जूझना मुश्किलों से सरे-आम होगा।
इन्हें जीतना पीढ़ियों के लिए भी तुम्हारा नया एक पैगाम होगा।।1।।
करे सामना धैर्य से मुश्किलों का न कर्तव्य से पैर पीछे हटाए।
नहीं हार से हार माने जहां में कभी कोशिशों से न जो जी चुराए।।
अँधेरा घना या निशा हो घनेरी…
Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2019 at 7:32am — 4 Comments
सोच समझ कर बोलिए, बातें सदा विनीत
छूटा धनु से बाण जो, लौटा कब हे! मीत
तीर-धनुष-तलवार से, बड़े दया औ' प्रेम
इन्हें बना लें शस्त्र यदि, जग को लेंगे जीत।
द्वेष-दंभ सम अरि सखे! यहाँ मनुज के कौन
बिन इनके संहार के, उपजे कब हिय प्रीत
सतत प्रयासों के करें, ऐसे तीव्र प्रहार
पर्वत पथ खुद छोड़ दें, होकर भय से भीत
अधर-सुधा घट भौंह-धनु, मुख…
Added by रामबली गुप्ता on November 19, 2018 at 1:21pm — 3 Comments
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे पथ, पावन दर्शन हेतु तुम्हारे।।
कौन भला जग में अब हे हरि संकट से यह प्राण उबारे।
आ कर दो उजियार प्रभो! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
सूत्र-भगण×7+गुरु गुरु; 211×7+22
Added by रामबली गुप्ता on October 13, 2018 at 9:48pm — 6 Comments
ज्योतिपुंज जगदीश! रहो नित ध्यान हमारे।
कलुष-द्वेष-दुर्भाव, हृदय-तम हर लो सारे।।
सत्य-स्नेह-सद्भाव, समर्पण का प्रभु! वर दो।
जला ज्ञान का दीप, प्रभा-शुचि हिय में भर दो।
दो बल-पौरुष-सद्बुद्धि हरि! मार्ग चुनेें सद्कर्म का।
हर जनजीवन के त्रास हम, फहरायें ध्वज धर्म का।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
रचनाकार-रामबली गुप्ता
शिल्प-प्रथम चार पद रोला छंद और अंतिम दो पद उल्लाला छंद के संयोग से छप्पय छंद की निष्पत्ति होती है।
Added by रामबली गुप्ता on October 9, 2018 at 11:30pm — 11 Comments
ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
बन के' सूरज सा' जमाने में' निकलते रहिये
हर अँधेरे को' उजाले मे' बदलते रहिये
जिंदगी एक सफर खुशियों' भरा हो अपना
यूँ ही बस आप मेरे साथ तो चलते रहिये
दिल के' मन्दिर में उजाले की' वज़ह आप ही हैं
अब तो इस दिल में' सदा दीप सा' जलते रहिये
मैं जो' हूँ साथ जमाने से' भला डर कैसा
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये
मेरे' हर गीत-ग़ज़ल-नज़्म-तरानों में' यूँ ही
बन के' नित…
Added by रामबली गुप्ता on September 14, 2018 at 1:39pm — 13 Comments
गीत
भावना में प्रेम का रस घोल प्यारे।
प्रेम जीवन में बड़ा अनमोल प्यारे।
भावना में.........
शब्द-शर मुख से निकल कर लौटते कब?
घाव ये गहरे करें हिय में लगें जब।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
मृृदु मधुुुर मकरन्द वाणी बोल प्यारे।
भावना में ........
मत बड़ा छोटा किसी को मान जग में।
काम आ जाए भला कब कौन मग में?
स्नेह का सम्बन्ध ही सबसे उचित है,
तथ्य यह मन की तुला में तोल प्यारे।
भावना…
Added by रामबली गुप्ता on February 17, 2018 at 9:00pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on February 14, 2018 at 2:28am — 6 Comments
न किंचित स्वार्थ हो हिय औ', भुला कर वैर जो सारे।
अमीरी औ' गरीबी के, मिटा कर भेद सब प्यारे!
करें सहयोग हर जन का, सभी के काम जो आते।
सदा वे श्रेष्ठ जन जग में, सुयश-सम्मान हैं पाते।।1।।
धरे हिय धैर्य औ' साहस, निरन्तर यत्न जो करते।
न किंचित राह की बाधा, न मुश्किल से किन्हीं डरते।
सहें हर यातना पथ की, शिखर पर किन्तु चढ़ते हैं।
वही प्रतिमान नव बन कर, अमिट इतिहास गढ़ते हैं।।2।।
सदा सुरभित सुमन बन कर, दिलों में जो यहाँ खिलते।
भुला कर…
Added by रामबली गुप्ता on January 31, 2018 at 11:54am — 7 Comments
जीवन में निज यत्न से, करिये ऐसे काम।
आप रहें या ना रहें, रहे सदा पर नाम।
रहे सदा पर नाम, नया इतिहास बनाएँ।
बनें जगत प्रतिमान, लोग यश गाथा गाएँ।
अगर समर्पण-स्नेह-धैर्य-साहस रख मन में।
हों इस हेतु प्रयास, सफल होंगे जीवन में।।1।।
जग में कठिन न है सखे, करना कोई काम।
दृढ निश्चय कर के बढ़ो, होगा जग में नाम।।
होगा जग में नाम, लक्ष्य पाना जो ठानो।
हर बाधा स्वयमेव, मिटेगी सच यह मानो।।
गिरि-सरि आयें राह , चुभें या काँटें पग में।
लक्ष्य प्राप्त कर…
Added by रामबली गुप्ता on December 13, 2017 at 1:12pm — 13 Comments
आज चुनावी रंग में, रँगे गली औ' गाँव।
प्रत्याशी हर व्यक्ति के, पकड़ रहे हैं पाँव।।1।।
पोस्टर बैनर से पटे, हैं सब दर-दीवार।
सभी मनाएँ प्रेम से, लोकतंत्र-त्यौहार।।2।।
सोच-समझ कर ही चुनें, जन प्रतिनिधि हे मीत!
सच्चे नेता यदि मिलें, लोकतंत्र की जीत।।3।।
धन-जन-बल-षडयंत्र से, वोट रहे जो मोल।
अरि वे राष्ट्र-समाज के, मत दें हिय में तोल।।4।।
जाति-धर्म के भेद हर आग्रह से हो मुक्त।
चुनें सहज नेतृत्व निज, कर्मठ…
Added by रामबली गुप्ता on December 11, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on November 23, 2017 at 6:30am — 5 Comments
Added by रामबली गुप्ता on November 13, 2017 at 8:07am — 14 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 25, 2017 at 5:00am — 49 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |