1212 1122 1212 112/22
बह्र –मुजतस मुसम्मन मख्बून मक्सूर
तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई
लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई
पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफ्हों को
क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई
न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत
बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई
सियासतों में बगावत नई नहीं यारों
कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई
सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को
कोई फरेबी यहाँ और चालबाज कोई
नचा रहे सभी एक दूसरे को यहाँ
बजा रहा कोई ढपली कहीं पे साज कोई
पँहुचते ही नहीं पैसे गरीब तक पूरे
कमाई ले उड़े जब बीच में ही बाज़ कोई
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
समर भाई जी एक तो ये पढ़ी थी किसी चिराग की नज्म जो गुलजार के लिए लिखी थी उसने
शाख़ ए शहतूत पर बैठा
रेशम का वो शायर...
गुलअंदाम नज़्में जब वरकों पर पिघलती हैं
कोई ज़िन्दगी जैसे फर्दों में ढलती है
हर्फ़ हर्फ़ में उस अहले कलम का दीदार होता है
चाहे सहरा ही हो आलम गुलज़ार होता है..
शाख़ ए शहतूत पर बैठा
रेशम का वो शायर
सफ्हों पे चाँद सितारे चुनता हुआ....
~~~ चिराग
आद० समर भाई जी ,आप हमेशा उर्दू या फारसी शब्दों को लेकर मेरा मार्ग दर्शन करते आये हैं आप मुझसे अधिक जानते हैं इस लिए वर्कों कई जगह पढने के बाद भी मैंने आकी इस्स्लाह के अनुसार अपनी मूल ग़ज़ल में सफ्हों कर लिया है हो सकता वो लिखने वाले भी मेरी तरह इस शब्द को लेकर कम जानकारी रखते हों एक दो जगह वरकों जरूर पढ़ा है मगर वहाँ मात्रा या बह्र जैसा कुछ भी नहीं था किन्तु एक बात अवश्य पूछना चाहूंगी --पलक को पलकों कहते हैं तो वरक को वरकों क्यूँ नहीं होता आप बेहतर समझा सकते हैं
आद० सुशील सरना जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया तहे दिल से आभारी हूँ |
सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को
कोई फरेबी यहाँ और चालबाज कोई
वाह क्या बात है आदरणीया राजेश कुमारी जी .... बहुत ही दिलकश अशआर बने हैं ... इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी, दाद कुबूल कीजिए
आद० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ इस जर्रानवाजी बेहद शुक्रिया |आपने जो कहा मैंने भी वाही सोचा था वैसे भी वर्कों बहुत सी नज्म ग़ज़लों में पढ़ा है इसलिए मैं इसे लिख सकी |
आद० डॉ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया |
प्रिय राहिला जी ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया .
आदरणीया राजेश जी , बहुत खूबसूरत गज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ।
आदरणीया ,
वर्क का बहुत वचन वैसे अवराक 221 भी होता है । फिर भी मै वर्कों को गलत नही समझता , जब सांस का बहु वचन सासों सही है, अनफास के होते हुये तो , मुझे वर्कों से भी कोई आपत्ति नही है । वैसे ये केवल मेरा खयाल , ज़रूरी नही किसे और से मेल खाये ।
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