For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़रीबों की विरासत (लघुकथा) शेख़ शहज़ाद उस्मानी

नई सदी, विरासत और सत्ता के बीच कुछ मुद्दों पर बहस छिड़ गई थी। सत्ता विरासत से संतुष्ट और प्रसन्न थी, उसे विरासत में ही अपना भविष्य नज़र आ रहा था। नई सदी विरासत को बोझ समझ कर उसे समस्याओं का जनक मान रही थी। विरासत अपनी प्रासंगिकता और महत्व की पुष्टि कर रही थी।

"केवल विज्ञान की विरासत सदैव मेरे लिए सार्थक और लाभदायक रही है, बाक़ी सभी ने ढेर सारी समस्याएँ और दुविधायें हम पर थोपीं हैं। एक ही लकीर पीटते रहने से मौलिक नवीन सृजन बाधित हुआ है। लोग आलसी, निकम्मे पराधीन और आश्रित हो रहे हैं विरासतों की वज़ह से। " - नई सदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा।

"मुझे तो नहीं लगता ऐसा कभी! "- सत्ता ने विरोध जताते हुए कहा- "साझा संस्कृति और साझा विरासत की वज़ह से ही आज राष्ट्र टिके हुए हैं, कहीं लोकतंत्र टिका हुआ है, कहीं राजशाही और कहीं तानाशाही! कहीं फ़िल्म जगत टिका हुआ है, कहीं शास्त्रीय संगीत! विरासत में मिली सत्ता की सफलता नहीं देखी क्या आपने?"

ये सब बातें सुनकर विरासत ने कहा- "बिलकुल सही कहा आपने। मेरी बदौलत ही राष्ट्र चमक रहे हैं, सभ्यता और संस्कृति सदैव विकासशील हैं, रोज़गार से लेकर पर्यटन तक, स्वाभिमान से लेकर प्रसिद्धि तक सब मेरी ही परिणति है!"

"बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातें, बड़े इरादे, बड़े सपने! ग़रीब या मुफ़लिस क्या जाने, विरासत क्या होती है? साझा विरासत हो या ग़ैर-साझा, उसे विरासत में क्या मिलता है? मेरा अनुभव तो यही है कि समाज की मुख्य धारा से दूर रहकर ग़रीब वही और वहीं है, जैसा जहां था!" - निराश नई सदी ने कहा।

[मौलिक व अप्रकाशित].

Views: 563

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2016 at 5:41am
मेरी रचना पर समय देकर समीक्षात्मक टिप्पणी द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब बशर भारतीय साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2016 at 5:40am
रचना पर समय देकर अनुमोदन करने विचारों से अवगत कराने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी व आदरणीया नीता कसार जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2016 at 5:38am
महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत कर मार्गदर्शन प्रदान करने, रचना का अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी व आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by pratibha pande on May 26, 2016 at 7:24pm

ये कभी ख़त्म नहीं होने वाला विवाद है ,  अच्छा विषय लिया है आपने ,निर्वहन भी सफलता से किया है ,     हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर आदरणीय उस्मानी जी   

Comment by Nita Kasar on May 26, 2016 at 3:01pm
विरासत को नही सहेज पायेंगे तो नयी पीढ़ी को क्या दिखायेंगें ।विरासत ही संपूर्ण राष्ट्र का आईना होती है।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 7:36am
एक अलग ही पहलू को उभारा है आपने बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 25, 2016 at 8:59pm
बहुत ही सार्थक , एक गम्भीर प्रस्तुति। विरासत एक धरोहर होती है , समय के साथ उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि एवं संवर्धन करते रहना पड़ता है , भविष्य निर्माण में वह एक भूमिका का काम करती है। अपनी संस्कृति को छोड़ना समीकीं नहीं होता है क्योंकि वह बहुत से कारकों और कारणों से निर्मित और उन पर आधारित होती है , कभी कभी वे कारक और कारण हमें दिखाई भी नहीं देते हैं।
आपको इस खूबसूरत सोच और प्रस्तुति केलिए बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 8:25pm

वाह ! सत्ता,विरासत और नयी सदी सभी के तर्क अच्छे हैं. किन्तु नई सदी में अनुभव की कमी भी हो सकती है. सुंदर लघुकथा. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब. सादर.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 25, 2016 at 4:52pm
बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब हौसला अफ़ज़ाई हेतु।
Comment by Samar kabeer on May 25, 2016 at 2:43pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service