For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फूल भी बदतमीज़ होने लगे // - सौरभ

2122  1212  22/112

ग़ज़ल
=====
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये

 

केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये

 

उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?

 

फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये

 

रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ? 

 

रात होंठों से नज़्म लिखती रही 
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये .. 

 

काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये

 

कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
**********
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1447

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 2, 2016 at 11:53pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,वाक़ई बहुत मासूम ग़ज़ल कही है आपने, मतले का जवाब नहीं ।

"फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये"

इस शैर की महीनी ने मुझे देर तक रोके रखा, बाक़ी के अशआर भी ख़ूब हुए हैं, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:45pm

भाई गनेश जी, ग़ज़ल अच्छी लगी, यही प्रयास का सुफल है. केतली वाला शेर मतले के ठीक बाद का शेर है. त्वरित पाठकीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ..

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:42pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सदाशयता के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:39pm

आदरणीय तेज़वीर सिंहजी, आपकी साफ़ग़ोई मुग्धकारी है. यह सही है कि रचनाओं का शिल्प एक ओर, उसके कथ्य से ही आम पाठक जुड़ता है. आपको कथ्य के तौर पर लिखा पसंद आया, यह मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:37pm

आदरणीय अनुज जी, आपकी उपस्थिति प्रभावी लगी. संभवतः आप पहली बार मेरी किसी रचना पर उपस्थित हुए हैं. आपके नज़रिये से आगे भी वाकिफ़ होने की अपेक्षा बनी रहेगी. सहयोग और साहचर्य केलिए धन्यवाद 

शुभ-शुभ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 2, 2016 at 8:45pm

मतला बहुत ही खुबसूरत, सीधे ध्यान आकर्षित करता है किन्तु केतली वाला शेर मुझे कमजोर सा लगा . अदा वाला शेर बेहतरीन हुआ है.

बधाई आदरणीय सौरभ भईया इस प्रस्तुति पर.

Comment by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 7:49pm

आदरणीय सौरभ सर
''जितनी भी तारीफ़ करूँ रुकतीं नहीं ज़ुबाँ
हर ग़ज़ल है आपकी नूर की एक ज़ू -ऐ-खाँ
इस गुदगुदाती सी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सर।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 2, 2016 at 7:48pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पांडे जी!मुझे गज़ल की बारीकियों का ज्ञान तो नहीं है, मगर कुछ बातें ऐसी होती हैं जो दिल को छू जाती हैं और बहुत दिन तक दिल में हलचल मचाती रहती हैं!मसलन,

फूल भी बदतमीज़ होने लगे 
सोचती पोर ये, लजा जाये!

कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये !

Comment by Anuj on May 2, 2016 at 7:31pm

रात होंठों से नज़्म लिखती हो, 
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?

इसे पढ़ कर "एंटी ग़ज़ल" के दौर के जफ़र इकबाल के कुछ शेर याद आ गए .

आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये 
और मासूम-सा दिखा जाये

हासिले ग़ज़ल ! बहुत खूब !!

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 6:47pm
अब ग़लती हो ही गई है तो कृपा कर क्षमा कर दीजिये!
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
:-)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
21 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service