For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देहात में, सिवान से (नवगीत) // --सौरभ

क्या हासिल हर किये-धरे का ?
गुमसी रातें
बोझिल भोर !
 
हर मुट्ठी जब कसी हुई है
कोई कितना करे प्रयास
आँसू चाहे उमड़-घुमड़ लें
मत छलकें पर
बनके आस
 
सूख निवाला
फँसा हलक में
’पानी ! पानी !’ कर दो शोर..

 

इच्छाओं के धुआँ-धुआँ में
किर्ची-मिर्ची होती आँख
किश्तें अब भी बची हुई हैं
रीते कैसे रोती आँख
 
पड़ा खेत इस कदर डराता
माँगे काया
रस्सी-डोर !
 
नये ढंग के शासक आये
अजब-ग़ज़ब इनका अंदाज़
रगड़-रगड़ कर, छुरी उलट कर
गरदन रेतें
बिन आवाज़

मगर सदा हम बकरे की माँ
कभी कलपते
कभी विभोर !
********************************
--सौरभ पाण्डेय
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 4:49pm

वाह | नवगीत पढ़कर आनंद आया | नवगीत के बारे में बिलकुल ही अनजान हूँ | पर यह विधा भी सुंदर है | धन्यवाद आदरणीय |

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 2, 2016 at 12:01pm

शानदार नवगीत हुआ है आदरणीय सौरभ जी, दाद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 31, 2015 at 11:45am

इच्छाओं के धुआँ-धुआँ में 
किर्ची-मिर्ची होती आँख 
किश्तें अब भी बची हुई हैं 
रीते कैसे रोती आँख 
 वाह  वाह  बहुत शानदार नव गीत रचा है आदरणीय सौरभ जी,  वातावरण,चलन ,परिस्थितियों वश कर्म को कोई सार्थक परिणाम न मिले तो   हताशा शब्दों में फूटती है चाहे वो किसी के दमन से उपजे भाव  हों या किसी तंगदिल की असंवेदनशीलता से उपजे भाव हों फलस्वरूप आँखें ही रीतती हैं आज मुट्ठियाँ क्या दिल की गलियाँ भी संकुचित हो रही हैं जिसमे किसी संवेदना की हवा भी मुश्किल से पँहुचती हैं |आपके गीत से उपजे भावों को उकेरा है बस ...सराहनीय प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2015 at 4:21pm

देशज मुहावरों  से सजी आपकी  तत्सम प्रवृत्ति से वैपरीत्य दर्शाती इस अद्भुत रचना का  भी क्या निराला अंदाज है -  क्या हासिल हर किये-धरे का ? गुमसी रातें  बोझिल भोर !  इस सुन्दर नवगीत हेतु आपको बधायी  आदरणीय . 

Comment by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:46pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 30, 2015 at 10:14am

आदरणीय सौरभ सर ..बहुत दिनों बाद ..आपका नवगीत पढने को मिला ..बर्तमान जीवन की हकीकत का सजीव चित्रण करती इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर प्रणाम और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जंग के मोड़ पर (लघुकथा)-  "मेरे अहं और वजूद का कुछ तो ख्याल रखा करो। हर जगह तुरंत ही टपक…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
" नमन मंच। सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हार्दिक स्वागत। प्रयासरत हैं सहभागिता हेतु।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"इस पटल के लघुकथाकार अपनी प्रस्तुतियों के साथ उपस्थित हों"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"उत्साहदायी शब्दों के लिए आभार आदरणीय गिरिराज जी"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आदरणीय अजयन  भाई , परिवर्तन के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गयी है  , हार्दिक बधाईयाँ "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आदरणीय अजय भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई ,  क्यों दोष किसी को देते हैं, क्यों नाम किसी…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. नीलेश भाई बेहद  कठिन रदीफ  पर आपंर अच्छी  ग़ज़ल कही है , दिली बधाईयाँ "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. नीलेश भाई , बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ,सभी शेर एक से बढ कर एक हैं , हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

१२२२    १२२२     १२२२      १२२मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं हैइसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन…See More
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं मगर पाण्डव हैं मुट्ठी भर, खड़े हैं. .हम इतनी बार जो गिर कर खड़े हैं…See More
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)

देखे जो एक दिन का भी जीना किसान का समझे तू कितना सख़्त है सीना किसान का मिट्टी नहीं अनाज उगलती है…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service