221 2122 221 2122
रौशन हो दिल हमारा, इक बार मुस्कुरा दो
खिल जाय बेतहाशा, इक बार मुस्कुरा दो
पलकों की कोर पर जो बादल बसे हुए हैं
घुल जाएँ फाहा-फाहा, इक बार मुस्कुरा दो
आपत्तियों के रुत की कुछ है अजीब फितरत
समझो अगर इशारा, इक बार मुस्कुरा दो
मालूम है तुम्हें भी कितना कठिन समय है
फिर भी तुम्हारा कहना, ’इक बार मुस्कुरा दो’ !
पत्थर के इस शहर में जो धुंध इस कदर है
मिट जायेगा अँधेरा, इक बार मुस्कुरा दो
निर्द्वंद्व सो रहा है आगोश में समन्दर
बहका रहा किनारा, इक बार मुस्कुरा दो
अभिव्यक्ति ज़िन्दग़ी की - दीपक तथा अँधेरा !
अब जी उठे उजाला, इक बार मुस्कुरा दो
स्वीकार हो निवेदन, अनुरोध कर रहा है
ये रोम-रोम सारा.. इक बार मुस्कुरा दो
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सर ,
निर्द्वंद्व इसके क्या मायने हुए यह शब्द समझ नहीं आया है आदरणीय | सादर |
बहुत ही प्रभावी काफिया है और बहुत मुलायम नजाकत भरी ग़ज़ल हुई है.
इस तरही ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी
आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपसे मिली दाद दिल के करीब हुआ करती है. सहयोग बना रहे आदरणीय.
प्रस्तुति को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया छाया शुक्लजी.
सादर
आदरणीय रवि शुक्लजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा है तो मन प्रसन्न है. हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.
भाई आबिद अली मन्सूरीजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा, यह आश्वस्तकारी है. हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय बैजनाथ शर्मा ’मिण्टू’जी, ग़ज़ल के शेर को पसंद करने केलिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय श्याम नारायण वर्माजी, आपसे मिली दाद केलिए दिल से धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी सदाशयता से अभिभूत हूँ. आपने जिन शब्दों में अपनी भवनाएँ व्यक्त की हैं वह मेरे रचनाकर्म और रचनाप्रयास के प्रति आपका अनुमोदन है.
यह सही है कि पिछले एक डेढ़ महीनों से ग़ज़ल विधा और इसकी प्रस्तुति के प्रति मेरी भी दृष्टि में भी बदलाव आया है. काठमाण्डू दौरे के दौरान आदरणीय एहतराम इस्लाम से विन्दुवत बातें हुई थीं.
यदि आपको यह प्रस्तुति प्रशंसनीय लगी है तो मैं अपने प्रयास को सदिश समझ रहा हूँ. ग़ज़ल पर शेर दर शेर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद.
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