For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- जान के दावेदार थे सदमे

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़ाइलुन/फ़ेलान

जान के दावेदार थे सदमे
मै अकेला, हज़ार थे सदमे

इस क़दर पाइदार थे सदमे
मेरे हमदम थे,यार थे सदमे

मेरे दिल में मुक़ीम हैं अब तो
कल तलक बे दियार थे सदमे

कोई भी बच नहीं सका इन से
सब के दिल पर सवार थे सदमे

कोई तामीरी काम , नामुम्किन
सारे तख़रीब कार थे सदमे

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बाद दुनिया में
सिर्फ मेरे ही यार थे सदमे

सोच ने मेरी इनको जन्म दिया
ज़ह्न का ख़लफ़िशार थे सदमे

आस्तीनों में छुप के आए 'समर'
किस क़दर होशियार थे सदमे

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2015 at 10:59am

बहुत प्रभावी हृदयभेदक ग़ज़ल हुई है आ० समर कबीर जी 

हर शेर लाजवाब है 

ढेरों बधाई इस असरदार ग़ज़ल पर 

सादर 

Comment by दिनेश कुमार on September 30, 2015 at 4:40am
बेहतरीन ग़ज़ल कही है आदरणीय समर साहब। एक एक शे'र बहुत दमदार। वाह वाह वाह...!!! मतला सबसे अचछा लगा।
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 28, 2015 at 11:14pm
बहुत सुन्दर आदरणीय समर कबीर साहब जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 28, 2015 at 3:40pm

कमाल .... ऐसी कठिन रदीफ़ और उस पर छोटी बह्र 

शानदार ग़ज़ल हुई है अशआर एक से बढ़कर एक हुए है. 

वाह .... दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 1:22pm

आदरणीय समर कबीर साहब आदब  शानदार ग़ज़ल शिल्‍प से बेहद खूबसूरत कथ्‍य है इस गज़ल में ।

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बाद दुनिया में
सिर्फ मेरे ही यार थे सदमे   थोड़े में कहें तो पीड़ा संप्रेषित हो रही है । आपने इसका मरहम भी उपर के एक शेर में कह दिया है

कोई भी बच नहीं सका इन से
सब के दिल पर सवार थे सदमे .... तो दुआ है हमारी .....   ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:26am

वाह  आदरणीय सर कबीर साहिब  शानदार , जानदार  फुल प्रूफ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service