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 ईश्वर अलक्ष्य है क्या ?

शायद –

तब तुमने माँ को नहीं जाना

न समझा न पहचाना

सचमुच

अभागा है तू

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:13am

-श्याम  नारायण  वर्मा जी --आभार  सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:07am

आ० सरना जी --अनुगृहीत

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:06am

रवि शुक्ल जी --सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:05am

आदरणीय समर कबीर जी -आपके प्रोत्साहन का सदैव  आभारी  हूँ .

Comment by pratibha pande on September 16, 2015 at 9:22am

सुंदर और  गहरे भावों के लिए आपको बधाई सादर 

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2015 at 8:50am

वाह ! ईश्वर कतई अलक्ष्य नहीं है ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2015 at 8:37am
कम शब्दों में आपने विस्तृत बात कह दी बधाई आपको
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2015 at 12:10am
वाह ! एक सम्पूर्ण कविता।
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on September 15, 2015 at 5:12pm
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई
Comment by Sushil Sarna on September 15, 2015 at 3:45pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी दिल को छूती इस लघु रचना  के लिए हार्दिक बधाई। 

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