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मसरूफ है दुआ करने-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

1212--- 1122---1212---22

 

जरा खंरोच जो आई लगे सदा करने

कलम जो धड़ से है, जाएँ कहाँ दवा करने

 

उसे भरम है अदालत से फैसला होगा

मुआमले को लगे वो रफा-दफा करने

 

लहू से आज नहा के जो लौट आया है  

गया था शख्स शरीफों का घर पता करने

 

वो एक आस लगाए इधर उधर ताके

शरीफ भीड़ लगी है खुदा-खुदा करने

 

हुआ है अब्र का भी हाल घर के नल जैसा

जो पानी मांग लो लगता है ये हवा करने

 

हुई है बेटियां मसरूफ आज दफ्तर में

घरों में माएं भी मसरूफ है दुआ करने

 

वो एक बार गरीबों का भाग दे लेते

लगे जो दौलतों से दौलतें गुना करने

 

हुबाब, जिंदगी ‘मिथिलेश’ तिश्नगी, सपने

ये खातमे के लिए है,  नहीं जमा करने  

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 5:53pm

आदरणीय मिथिलेश जी, ये ग़ज़ल सचमुच हटकर है। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल कीजिए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 2:07pm

आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. 'आब' की जगह 'पानी' का मार्गदर्शन बिलकुल सही है. नल के साथ पानी शब्द का सम्बन्ध ज्यादा प्रभावी होगा. आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार करता हूँ. ग़ज़ल की सराहना, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 11:57am

लहू से आज नहा के जो लौट आया है  

गया था शख्स शरीफों का घर पता करने

बहुत खूब ! 

कई शेर कमाल हुए हैं, आदरणीय मिथिलेश भाईजी .

नल वाले शेर में आब शब्द की जगह पानी का उपयोग हुआ होत अतो यह बड़ा ही मारक बन पड़ता.

कारण ? कुछ शब्द अधिक प्रभावी होते हैं. 

हार्दिक शुभेच्छाएँ 




सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 3:23am

आदरणीय शिज्जु भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 3:22am

आदरणीय समर कबीर जी, मिसरे के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार. मार्गदर्शन के लिए पुनः आपका बहुत बहुत आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2015 at 10:37pm
वाह मिथिलेश जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फ़रमायें
Comment by Samar kabeer on September 8, 2015 at 10:21pm
सही है,बहुत ख़ूब,मैं यही मिसरा कहना चाहता था ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:28pm
आदरणीय santlal जी ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा कहना सार्थक हो गया। आपने मेरा पसंदीदा शेर कोट किया है। आपका हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:26pm
आदरणीय राहुल भाई जी हार्दिक आभार
Comment by Santlal Karun on September 8, 2015 at 7:20pm

आदरणीय वामनकर जी,

व्यापक संवेदनाओं को उकेरती --

"हुई है बेटियां मसरूफ आज दफ्तर में

घरों में माएं भी मसरूफ है दुआ करने"

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

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