For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़े से मंदिर की बड़ी सी मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़े एक बड़े आदमी ने कहा, "भगवन, हम सब जानते हैं कि प्रकृति उसी का चुनाव करती है जो सबसे शक्तिशाली होता है। जो प्रजाति कमजोर होती है और अपनी रक्षा नहीं कर पाती वो मिट जाती है। इस तरह सीमित संसाधनों का सबसे शक्तिशाली प्रजातियों द्वारा उपयोग किया जाता है और उसी से ये दुनिया विकसित होती है। तो भगवन मैंने जो मज़दूरों, गरीबों, कमजोरों और लाचारों का अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया है वो मैंने एक तरह से प्रकृति की मदद ही की है। ऊपर से मैंने आपका ये विशालकाय मंदिर बनवाकर जो महान कार्य किया है उसकी वजह से मेरे इन छोटे मोटे पापों को तो आप निश्चित ही क्षमा कर देंगे।"

मूर्ति से आवाज़ आई, "एक समय था जब धरती पर डायनासोर सबसे शक्तिशाली प्रजाति हुआ करती थी। फिर हिमयुग आया और डायनासोरों के बड़े एवं शक्तिशाली शरीरों का अत्यधिक क्षेत्रफल ही उनकी मृत्यु का कारण बन गया। उस समय जो छोटी और कमजोर प्रजातियाँ थीं वो अपने छोटे से शरीर के कारण उस भीषण ठंड में भी बच गईं। प्रकृति सबसे शक्तिशाली को नहीं चुनती, उसे चुनती है जो अपने आप को बदलते वातावरण के अनुकूल बना पाता है। ऐसा करने में ज़्यादातर छोटे और कमजोर ही सफल हो पाते हैं।"     

यह सुनते ही वो बड़ा आदमी मंदिर से ऐसे भागा जैसे उसके पीछे भूत पड़ गए हों। 

.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 12:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 6:16am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी गज़ल की तरह आपकी कथा का विषय भी निराला है , बहुत सुन्दर । वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरी रचना । हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:08pm

 बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 6:14pm

उसके संशय का निवारण ही उसकी अंतरात्मा ने कर दिया कहते हैं न आदमी सब समझता है पर समझना नहीं चाहता.प्रकर्ति के अनुरूप सब कहाँ ढाल पते हैं अपने आप को ,अच्छी लघु कथा लिखी है हार्दिक बधाई आ० धर्मेन्द्र जी 

Comment by विनय कुमार on July 14, 2015 at 6:56pm

ये प्रकृति का नियम है कि वही बचता है जो अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लेता है | डार्विन के सिद्धांत को बखूबी बताती बढ़िया लघुकथा , बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 14, 2015 at 1:35pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. शीर्षक आकर्षक है और लघुकथा उसे सार्थक भी कर रही है. लघुकथा अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल है. पंच लाइन दमदार है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 14, 2015 at 11:40am

प्रकृति सबसे शक्तिशाली को नहीं चुनती, उसे चुनती है जो अपने आप को बदलते वातावरण के अनुकूल बना पाता है।

बढ़िया शिक्षा 

बधाई , सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
5 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
5 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"विषय पर सार्थक दोहावली, हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service