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पेड़ की पुकार ___मनोज कुमार अहसास

घर सजाते रहे ग़र मुझे चीर कर सारी दुनिया किसी दिन उजड़ जायेगी
हम हरें हैँ तो रौशन है सारा जहाँ वरना जीवन की सूरत बिगड़ जायेगी


हम खड़े धूप में तुमको छाया दिये फल मुहब्बत से तुमको सब दे दिये
तुमने अंधी कटाई न रोकी अगर तुमसे मीठी सी छाया बिछड़ जायेगी


साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी


हमसे बारिश मिले हमसे महके चमन बिन हमारे अधूरा रहे आचमन
हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो ताजगी सारी तुमसे बिछड़ जायेगी

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Rajan Sharma on June 7, 2015 at 10:20pm
आपको ये गजल पढ़ते हुए आपको सुना बड़े ही तरन्नुम में पढ़ रहे थे बहुत सूंदर और अर्थ पूर्ण गज़ल है । वाह अहसास वाह......
Comment by amit dhiman on June 7, 2015 at 4:18pm
बहुत सुनदर भाईसाहब
Comment by amit dhiman on June 7, 2015 at 4:17pm
बहुत सुनदर भाईसाहब
Comment by मनोज अहसास on June 6, 2015 at 3:48pm
जी मिश्रा जी
मै प्रयास करूँगा
धन्यवाद
सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 6, 2015 at 8:38am

पर्यावरण दिवस पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुयी है भाई मनोज जी!हार्दिक बधाई!
निवेदन है की गजल के साथ उसकी बहर भी दिया करें!जिससे पढने वाले को आसानी रहें!
तथा रचना के नाम के साथ या टैग्स में रचना की विधा भी लिखा करें!

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 7:32pm

साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी,,,,,,,,,,,पर्यावरण को समर्पित आपकी इस सुन्दर रचना पर ढेरों बधाई आ.Manoj kumar Ahsaas जी |

Comment by मनोज अहसास on June 5, 2015 at 5:35pm
आप सभी का आभार
पर्यावरण दिवस की शुभकामना
सादर
Comment by Samar kabeer on June 5, 2015 at 3:45pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,आपके लेखन में जो गहराई है वो दिल को छूती है, इस सफ़ल प्रयास के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2015 at 2:20pm

साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे----इसमें ले बाधित है -----इसे ऐसे कर सकते हैं ----साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा  यदि  ज़हर उसका चुपचाप  पीते रहे

हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो ताजगी सारी तुमसे बिछड़ जाय---------------इसे इस तरह करें -----------हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो एक दिन सारी दुनिया उजड़ जायेगी . 

आपकी कविता बहुत सुन्दर और प्रासंगिक है  . इसमें रवानी है , शब्द चयन अच्छा है . आपको बधाई  .

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2015 at 1:38pm

साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे

यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी

क्या बात है आदरणीय … बहुत ही सार्थक प्रस्तुति दी है आपने .... हार्दिक बधाई।

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